मौत देना मौत का अहसास मत देना,
जो छला जाए कभी विश्वास मत देना ।
पंख दे पाओ नहीं गर तो वही अच्छा
सामने मेरे खुला आकाश मत देना।
दश्त देना, धूप देना , गरमियाँ देना
ऐसे में लेकिन खुदाया प्यास मत देना ।
है हमे मंजूर अंधेरा उम्र भर का
जुगनुओं से ले मुझे प्रकाश मत देना ।
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नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप संवेदनशील रचनाकार हैं. ग़ज़ल पर हुआ प्रयास आश्वस्त करता है.
सुधीजनों के कहे पर ध्यान देंगे, यह कहने की आवश्यकता भी नहीं है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय ..आपकी ग़ज़ल के भाव पसंद आये ..आदरणीय बागी जी ने गलती की तरफ इशारा कर ही दिया है ..इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधायी सादर
आ० श्याम नारायण जी
अच्छी कोशिश i काफिया बंदी त्रुटिपूर्ण .
खुबसूरत प्रयास है इसके लिए बहुत बहुत बधाई, 'श' और 'स' के उच्चारण में अंतर है इसलिए काफिया बाँधने में सावधानी की आवश्यकता है.
आ . Shyam Narain Verma जी आपका हार्दिक आभार ...
बहुत शुक्रिया आ॰ narendrasinh chauhan जी ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
बहोत खूब उम्दा ग़ज़ल
......हार्दिक आभार Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी ..
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