"अरी भागवान ! तुम इस तरह क्यूँ देख रही हो बेटे को ?"
" देख रही हूँ कहीं लडखडाया तो हम झट से सहारा दे देंगे ."
"क्या वाकई तुम्हे लगता है कि उसे तुम्हारे सहारे की जरूरत है ?"
" शायद नहीं , बड़ा हो गया है अब जीवन साथी भी मिल गयी है ."
"हमने अपना फ़र्ज़ पूरा किया ,अब उसे हमारे सहारे की जरूरत नहीं है .
,जीवन पथ पर चलना सीखा दिया है हमने "
"पर अब हम असक्त हो गएँ हैं ,उसके प्यार की बैसाखी की जरूरत अब हमें है ."
@मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
अच्छी लघु कथा है सच कहा आपने बाद में मातापिता को ही सहारे की जरूरत होती है |हार्दिक बधाई रीता जी.
प्रयास आशान्वित करता है . सादर.
आभार श्रीमान शरद जी . आपके कमेंट्स अगली रचना लिखने के लिए एनेर्जी देंगे . धन्यवाद
"पर अब हम असक्त हो गएँ हैं ,उसके प्यार की बैसाखी की जरूरत अब हमें है ." स्थिति ये है..
" देख रही हूँ कहीं लडखडाया तो हम झट से सहारा दे देंगे ." पर वत्सल्य बल्वती है...
इस भाव भीनी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई.. रीता जी.. सादर.
आदरणीय श्याम नरेन वर्मा जी आभारी हूँ आपकी बधाई पा कर .
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥ |
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