For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वफ़ाओं का अपनी सिला चाहता हूँ

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

वफ़ाओं का अपनी सिला चाहता हूँ
ख़रीदो मुझे मैं बिका चाहता हूँ

मिरी ज़िन्दगी तो हुई ख़त्म,बेटे
मैं तेरे लिये सोचना चाहता हूँ

मुझे रोक लेती हैं मासूम कलियाँ
मैं ख़ुद से अगर भागना चाहता हूँ

मुझे उनकी ख़ुश्बू से महकाए रखना
मैं क्या तुझ से बाद-ए-सबा चाहता हूँ

लगाते हो क्यूँ दैर-ओ-मस्जिद प ताले
ख़ुदा का हर इक घर खुला चाहता हूँ

छियालीस डिग्री से ऊपर है गर्मी
मैं सावन की ठंडी हवा चाहता हूँ

"समर" अब ये क़िस्सा यहीं ख़त्म कर दो
सिफ़ारिश मैं तुम से किया चाहता हूँ

"समर कबीर"
मौलिक /अप्रकाशित

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 1, 2015 at 2:22pm

आदरणीय समर कबीर जी ...इस शानदार ग़ज़ल के हर शेर के लिए तहे दिल बधाई ...आदरणीय सौरभ सर की प्रतिक्रिया से रचना को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली ..ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 11:55am

आदरणीय

मिरी ज़िन्दगी तो हुई ख़त्म,बेटे
मैं तेरे लिये सोचना चाहता हूँ----------------बाखुदा क्या गजल है . जादू-ए-कलम

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 12:26pm

जब इतनी मशहूर ज़मीन हो तो शेर भी ऐसे बेमिसाल होने चाहिए ...
वाह वा
कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद क़ुबूल करें ...

Comment by Samar kabeer on May 31, 2015 at 10:39am
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by shree suneel on May 31, 2015 at 2:30am
मुझे रोक लेती हैं मासूम कलियाँ
मैं ख़ुद से अगर भागना चाहता हूँ"... उम्दा शे'र
आदरणीय समर कबीर सर, एक से बढ़कर एक, ख़ूबसूरत ग़ज़लें हैं आपके पास. इस ग़ज़ल के लिए भी दिल बधाईयाँ आपको.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 30, 2015 at 11:04pm

आदरणीय समर साहब, अभी-अभी थोड़ी देर लघुकथा पर चल रहे आयोजन में एक जगह मैंने जो निवेदन किया है, उसे आपके माध्यम से पुनः कहना चाहता हूँ.

मैं सर्वोपरि पाठक हूँ. एक निर्मम पाठक. ’वाह-वाह’ के लेमनचूस लुटा कर रचनाकारों की रचनाधर्मिता से खिलवाड़ नहीं कर सकता. यह दायित्वबोध ही रचनाओं के नीर-क्षीर का संबल देता है. यही पाठकत्व किसी रचनाकर्म के लिए आवश्यक विन्दु भी उपलब्ध कराता है. मेरा सदा से मानना रहा है, यदि रचनाकारों के अन्दर का पाठक संवेदनशील और सुग्राही नहीं है तो रचनाकारों के कर्म को सदा असंयत होने खतरा बना रहेगा. दूसरे, यदि अपने अन्दर का पाठक सचेत और जागरुक है तो वह अन्य रचनाकारों की सुगढ़ रचनाओं का दिल खोल कर स्वागत करेगा. मैं बस अपने पाठक को जिलाये रखना चाहता हूँ, आदरणीय.
सादर

Comment by Samar kabeer on May 30, 2015 at 10:53pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,

"तलब करना अबस है दाद का बज़्म-ए-सुख़नदाँ में
जो अच्छा शैर होता है सुख़नवर बोल उठते हैं"

सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,ऐसे ही मेरी ग़ज़लों में शिर्कत कर के मेरा हौसला बढ़ाते रहें,धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on May 30, 2015 at 10:45pm
आली जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,किसी ने क्या ख़ूब कहा है :-

"क़द्र दाँ हर जगह मयस्सर हैं
आदमी में कोई कमाल तो हो"

आप शायद यक़ीन नहीं करेंगे कि मुझे आपकी तलाश बहुत दिनों से थी ,अब महसूस हो रहा है कि वो तलाश ख़त्म हुई ,आपसे एक गुज़ारिश है कि मेरी ग़ज़लों को और बारीक छलनी में छानें,जब मैंने मेरे बेटे से यह ग़ज़ल पोस्ट करने को कहा तो वो कहने लगा,अब बस भी करो पापा,इक़बाल की ज़मीन में कितने शैर कहोगे,कोई दूसरी ग़ज़ल पोस्ट कर दो ,लेकिन ये क्या जाने कि मुझे जिन अशआर पर दाद लेना थी वो मुझे मिल गई ,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 30, 2015 at 10:28pm
जनाब "जान" गोरखपुरी जी,आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 30, 2015 at 10:26pm
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
20 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
21 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
21 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service