" डॉक्टर साहब , बच्चा बच तो जायेगा न ", उसके दोनों हाँथ जुड़े थे ।
" देखो हम लोग पूरी कोशिश करेंगे , आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी । बस पैसों का इंतज़ाम कर लेना "।
सुबह जूनियर डॉक्टर ने फोन किया " सर , स्पेशलिस्ट का फोन आया था कि वो नहीं आ पाएंगे | इसको डिस्चार्ज कर देते हैं , कहीं और करवा लेगा ऑपरेशन "।
" क्यों , ऑपरेशन क्या असफ़ल नहीं होते ", डॉक्टर साहब ने समझाया । ऑपरेशन की तैयारियाँ होने लगीं ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , ये एक स्याह पक्ष है इस पेशे का ।
यही हो रहा है आदरणीय , पैसे की खातिर जान दाँव पर लग रही है मरीजों की । बहुत सुन्दर ! हार्दिक बधाई आपको ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी .
"देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर ",इस लघुकथा पर आपको बधाई आ. vinaya kumar singh जी |
चिकित्सा अब एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है और जिस व्यवसाय में पैसा मिलने लगे , वहां से मानवता का ह्रास होने लगता है । बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी.
आदरणीय विनय जी,
चिकित्सक का एक स्याह चेहरा दिखाया है. ना जाने कितने मरीज जाने अनजाने इनके व्यापार का हिस्सा बन जाते हैं
सुन्दर कथा
सादर.
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी.
बहुत ही कम शब्दों में गहरी बात कहती एक सार्थक रचना !
आदरणीय विनय कुमार जी सादर बधाई स्वीकार करे,
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ।
चिकित्सा व्यवस्था की कलई खोलती उद्देश्यपूर्ण कथा. सुन्दर कथा.
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