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पर्यावरण दिवस पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुयी है भाई मनोज जी!हार्दिक बधाई!
निवेदन है की गजल के साथ उसकी बहर भी दिया करें!जिससे पढने वाले को आसानी रहें!
तथा रचना के नाम के साथ या टैग्स में रचना की विधा भी लिखा करें!
साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी,,,,,,,,,,,पर्यावरण को समर्पित आपकी इस सुन्दर रचना पर ढेरों बधाई आ.Manoj kumar Ahsaas जी |
साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे----इसमें ले बाधित है -----इसे ऐसे कर सकते हैं ----साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा यदि ज़हर उसका चुपचाप पीते रहे
हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो ताजगी सारी तुमसे बिछड़ जाय---------------इसे इस तरह करें -----------हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो एक दिन सारी दुनिया उजड़ जायेगी .
आपकी कविता बहुत सुन्दर और प्रासंगिक है . इसमें रवानी है , शब्द चयन अच्छा है . आपको बधाई .
साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी
क्या बात है आदरणीय … बहुत ही सार्थक प्रस्तुति दी है आपने .... हार्दिक बधाई।
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