For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पेड़ की पुकार ___मनोज कुमार अहसास

घर सजाते रहे ग़र मुझे चीर कर सारी दुनिया किसी दिन उजड़ जायेगी
हम हरें हैँ तो रौशन है सारा जहाँ वरना जीवन की सूरत बिगड़ जायेगी


हम खड़े धूप में तुमको छाया दिये फल मुहब्बत से तुमको सब दे दिये
तुमने अंधी कटाई न रोकी अगर तुमसे मीठी सी छाया बिछड़ जायेगी


साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी


हमसे बारिश मिले हमसे महके चमन बिन हमारे अधूरा रहे आचमन
हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो ताजगी सारी तुमसे बिछड़ जायेगी

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rajan Sharma on June 7, 2015 at 10:20pm
आपको ये गजल पढ़ते हुए आपको सुना बड़े ही तरन्नुम में पढ़ रहे थे बहुत सूंदर और अर्थ पूर्ण गज़ल है । वाह अहसास वाह......
Comment by amit dhiman on June 7, 2015 at 4:18pm
बहुत सुनदर भाईसाहब
Comment by amit dhiman on June 7, 2015 at 4:17pm
बहुत सुनदर भाईसाहब
Comment by मनोज अहसास on June 6, 2015 at 3:48pm
जी मिश्रा जी
मै प्रयास करूँगा
धन्यवाद
सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 6, 2015 at 8:38am

पर्यावरण दिवस पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुयी है भाई मनोज जी!हार्दिक बधाई!
निवेदन है की गजल के साथ उसकी बहर भी दिया करें!जिससे पढने वाले को आसानी रहें!
तथा रचना के नाम के साथ या टैग्स में रचना की विधा भी लिखा करें!

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:32pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे
यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी,,,,,,,,,,,पर्यावरण को समर्पित आपकी इस सुन्दर रचना पर ढेरों बधाई आ.Manoj kumar Ahsaas जी |

Comment by मनोज अहसास on June 5, 2015 at 5:35pm
आप सभी का आभार
पर्यावरण दिवस की शुभकामना
सादर
Comment by Samar kabeer on June 5, 2015 at 3:45pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,आपके लेखन में जो गहराई है वो दिल को छूती है, इस सफ़ल प्रयास के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2015 at 2:20pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे----इसमें ले बाधित है -----इसे ऐसे कर सकते हैं ----साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा  यदि  ज़हर उसका चुपचाप  पीते रहे

हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो ताजगी सारी तुमसे बिछड़ जाय---------------इसे इस तरह करें -----------हम न होंगे तो कैसे रहोगे कहो एक दिन सारी दुनिया उजड़ जायेगी . 

आपकी कविता बहुत सुन्दर और प्रासंगिक है  . इसमें रवानी है , शब्द चयन अच्छा है . आपको बधाई  .

Comment by Sushil Sarna on June 5, 2015 at 1:38pm

साँस लेते हो तुम जिस हवा में सदा ज़हर उसका ख़ामोशी से पीते रहे

यूँ ही बढ़ता रहा जो धुंए का असर साँस तेरी भी एकदिन उखड जायेगी

क्या बात है आदरणीय … बहुत ही सार्थक प्रस्तुति दी है आपने .... हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service