2122 2122 2122 212
है कोई क्या इस जहाँ में जो कभी हारा नहीं
"सिर्फ़ पाया हो यहाँ पर और कुछ खोया नहीं"
पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह
दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं
ख़्वाब की बातें कहूँ क्या, नींद जब दुश्मन हुई
माँ का साया जब से रूठा , तब से मैं सोया नहीं
बादलों में खेमा बन्दी भी हुई क्या ? आज कल
क्यों मेरे घर से गुज़रते वक़्त वो बरसा नहीं
मरहले के और पहले थक गया था काफिला
आबला पा था मुसाफिर वो मगर बैठा नहीं
शक्लो सूरत मै मिला के देख कर , सोचा यही
आदमी लगता है वो पर आदमी जैसा नहीं
उनके टेढ़े प्रश्न का उत्तर तो रखता हूँ मगर
हर्फ मेरे खार से हैं , इसलिये कहता नहीं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
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शक्लो सूरत मै मिला के देख कर , सोचा यही
आदमी लगता है वो पर आदमी जैसा नहीं
उनके टेढ़े प्रश्न का उत्तर तो रखता हूँ मगर
हर्फ मेरे खार से हैं , इसलिये कहता नहीं लाजवाब
पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह
दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं वाह! वाह! बेहतरीन
ख़्वाब की बातें कहूँ क्या, नींद जब दुश्मन हुई
माँ का साया जब से रूठा , तब से मैं सोया नहीं अभिनन्दन!
उनके टेढ़े प्रश्न का उत्तर तो रखता हूँ मगर
हर्फ मेरे खार से हैं , इसलिये कहता नहीं बहुत सुन्दर!
बहुत बेहतरीन गजल हुयी है आ० गिरिराज सर! शेर दर शेर दिली दाद कबूल फरमाएं!
आदरणीय महर्षि भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय विजय भाई , आपना सराहना और उत्साह वर्धन ही मेरा सम्बल है , आपका बहुत आभार ।
है कोई क्या इस जहाँ में जो कभी हारा नहीं
"सिर्फ़ पाया हो यहाँ पर और कुछ खोया नहीं"
पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह
दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं
ख़्वाब की बातें कहूँ क्या, नींद जब दुश्मन हुई
माँ का साया जब से रूठा , तब से मैं सोया नहीं,,,,,,,,,,वाह !
आ. गिरिराज भंडारी सर ,,,बहुत खूब अपने अनुज की बधाई स्वीकार करें |
शक्लो सूरत मै मिला के देख कर , सोचा यही
आदमी लगता है वो पर आदमी जैसा नहीं। .
बहुत खूब, बधाई, आदरणीय गिरीराज भंडारी जी , सादर।
आदरणीय मोहन सेठी भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।
कमाल कमाल ....
पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह
दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं....बहुत उम्दा
आदरणीय श्याम नारायण भाई , आपका बहुत आभार ।
आदरणीय विनय कुमार भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
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