दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"
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2122 2122 2122 212
हौसला जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले
ताड़ सी ऊँचाइयों वाले बहुत बौने मिले
आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो
जब कठिन आया समय , वो दैर में झुकते मिले
जिनका दावा रहबरी का था उन्ही के पैर क्यूँ
मोड़ पर फिर लड़खड़ाये , दम ब दम रुकते मिले
क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, तुम सा अपना भी अगर
उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले
आज उजली धूप के कानून के रक्षक हैं जो
रात की तारीक़ियों में, आइना तोड़े मिले
लाठियाँ जिनकी चलीं थीं नातुवाँ की पीठ पर
गिड़गिड़ाते, मंत्रियों से हाथ भी जोड़े मिले
जिनपे हमको था यक़ीं , हैं रोशनी के हम सफर
वो गड़े पत्थर नुमा अब राह के रोड़े मिले
बीच उनके हम कहाँ मिल्लत कराते , जो सभी
दरमियाँ खोदे हैं खाई , हर क़सम तोड़े मिले
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बढ़िया फिल बदीह ग़ज़ल
बधाई सर
क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, तुम सा अपना भी अगर
उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले लाजव़ाब! लाजव़ाब!
बहुत ही सुन्दर ग़जल हुयी है आदरणीय !अभिनन्दन! फिल बदीह से परिचय भी हो गया और वीनस सर से बहुत सीखने को मिला!हार्दिक आभार! सादर!
आदरणीय नीलेश भाई , आपका दिली शुक्रिया ।
बहुत ख़ूब आदरणीय गिरिराज जी...
वीनस जी के मार्गदर्शन से मुझे बहुत सी बारीक बातें पता चली हैं जो अक्सर मैं भी चूक जाता हूँ .
बधाई आपको
आदरणीय वीनस भाई , एक एक शे र पर आपकी सलाह देख बहुत अच्छा लगा , और कुछ शर्मिन्दगी भी हुई , अभी भी बहुत सी ग़लतियाँ हो रहीं हैं । फिल बदीह कहके मै अपने को माफ नहीं कर सकता , अब और जियादा कोशिश करूँ गा । अभी सुधार कर लिख रहा हूँ , फिर दे एक नज़र ज़रूर कीजियेगा , आपका आभारी हूँ ।
हौसले जो दे रहे थे वो थके - हारे मिले.... व्यक्तिवाचक बहुवचन है मगर कई लोग मिल कर भी हौसला ही देते हैं हौसले नहीं
ताड़ सी ऊँचाइयाँ वाले बहुत बौने मिले.......... ऊचाईयों सही होता ... ये मिसरा और बेहतर हो सकता है
आस्था को व्यर्थ की बातें कहा करते थे जो
खुद, कठिन वक़्तों में अपने, दैर में झुकते मिले .... वक्त को वक्तों करना शाइर की मजबूरी को दर्शाता है
जिनका दावा रहबरी का था उन्ही के पैर क्यूँ
मोड़ में फिर लड़खड़ाये , दम ब दम रुकते मिले...... मोड़ में ... को मोड़ पर करना उचित होगा
क्यूँ यक़ीं कर लूँ किसी पे, आपसे अपने अगर
उस्तरा लाये छिपा के , पीठ पर साधे मिले ........ अपने (बहुवचन) के कारण लायें लिखना होगा
दिन की उजली धूप के कानून के रक्षक सभी ........
रात की तारीक़ियों में, आइना तोड़े मिले............
दिन की शब्द पूरी तरह भर्ती का है ....क्योकि रात की धूप नहीं होती ...
जैसे काला कोयला कहना गलत है क्योकि सफ़ेद कोयला नहीं होता ....,,,
उजली धूप का प्रयोग सही है क्योकि हल्की धुप चटक धूप आदि भी होती है
रात की तारीकियों सही है क्योकि रात के अतिरिक्त भी तारीकी हो सकती है
सभी के जगह हैं जो का प्रयोग करके देखें ...
जिनपे हमको था यक़ीं , हैं रोशनी के हम सफर
पत्थरों , ख़ारों के जैसे , राह के रोड़े मिले............बात पूरी होने के लिए दूसरे मिसरे में वो ही जैसा कोई शब्द आना चाहिए
हम कहाँ तक़रीर से मिल्लत कराते दोस्तों
खोदते खाई मिले जब, मुँह सभी मोड़े मिले....... इसे वाक्य बना कर देख लें, कुछ शब्द गायब हैं कुछ भर्ती के हैं ...
फिल्बदीह ग़ज़ल है इसलिए लिखते समय तुरंत कमियाँ नहीं दिखतीं और तुरंत पोस्ट भी करना होता है...
कुछ दिन बीते होते तो आपको भी ये कमियां दिख जातीं
आदरणीया राजेश जी म हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया । मुझे तो ऊँ चाइयाँ सही लग रहा है , फिर भी आपकी सलाह विचाराधीन रख रहा हूँ । आपका आभार ।
आदरणीय श्री सुनील भाई , गज़ल की सराहना का बेहद शुक्रिया ।
आदरणीय मोहन भाई , उत्साह वर्धन एक लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ।
हिंदी में कहें तो आशु रचना ...वाह्ह्ह बहुत बढ़िया लिखी ये फिल बदीह ग़ज़ल
सभी शेर गंभीर सार्थकता लिए हुए हैं
ताड़ सी ऊँचाइयाँ वाले बहुत बौने मिले-----ऊँचाइयों वाले आएगा शायद
दिल से दाद कबूलिये आदरणीय गिरिराज जी
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