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जहाँ ने जहाँ पर शराफत लिखी है
वहीं आज मैने बग़ावत लिखी है
महज़ क्यूँ क़िताबों मे चाहत लिखी है
दिलों में तो पत्थर से नफ़रत लिखी है
ये अतफाल तहज़ीब लाये कहाँ से --- बच्चे
दिलों में मुख़ालिफ इबारत लिखी है
ज़रा गौर से आप पढ़ लें , तो जाने
हरिक जा पे मैने मुहब्बत लिखी है
बड़ी कोशिशों से जो पाटी थी खाई
वहाँ किसने फिर से अदावत लिखी है ?
भले आप नेकी का दें नाम , लेकिन
हर इक् शक़्ल में तो तिजारत लिखी है
न बोलें मुझे, मैं ज़ुबाँ से भी बोलूँ
मेरी आँखें पढ़ लें , ज़रूरत लिखी है
वरक़ सारे देखे, हरिक लफ्ज़ परखा
महज़ मेरी क़िस्मत में ग़ुरबत लिखी है
ख़ुदा है, बता तू , कहाँ है जगह वो ?
जहाँ तेरे बन्दों ने राहत लिखी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना और भावों के अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ
आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय कृष्ना भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।
इस ग़ज़ल पर आवश्यक सुझाव के साथ बातें हुई हैं. मुझे सुझाव और आपका कहना पसंद आये.
शुभकामनाएँ आदरणीय गिरिराज भाईजी.
आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया फ़िल बदीह ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
लाजवाब आ० गिरिराज सर!अभिनन्दन!
आदरणीय श्री सुनील भाई , आपका बहुत आभार ।
आदरणीय वीनस भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति खुशी का कारण है , ऊपर के दोनो सुधार कर रहा हूँ , देखियेगा , सुधार के बाद सही हुये कि नहीं ? आपका आभार ।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।
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