For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मटमैले सपने ( लघुकथा )

उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on June 10, 2015 at 3:37am

बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..

Comment by somesh kumar on June 9, 2015 at 11:23pm

अच्छी लघुकथा ,चाँद के साथ यहाँ सपने और भरोसा वो भी मटमैला हो रहा है |बधाई

Comment by विनय कुमार on June 9, 2015 at 12:22pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आप की टिप्पणी हमेशा मार्गदर्शन करती है.

Comment by विनय कुमार on June 9, 2015 at 12:21pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपके सब प्रश्न जायज़ हैं | दरअसल प्यार और मंज़िलों की चाह , ये दो चीजें इंसान को अँधा बना देती है और अगर ये दोनों साथ मिल जाएँ तो फिर विवेक ख़त्म हो जाता है | आपसे ऐसे ही विश्लेषण की हमेशा उम्मीद रहेगी जिससे अपनी कमियां भी पता चलें | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2015 at 11:22am

आ० विनय जी

क्या कहूं , राजेश दीदी का प्रश्न भी जायज है  पर  विश्वास- कर  महिलायें  अकसर पतन की और ही जाती है  i इस प्रतिभा के लिए यही कहूँगा -                              जमाने ने मारे जवान कैसे कैसे

                                      जमीं खा गयी आसमान कैसे-कैसे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 9, 2015 at 10:48am

हालांकि बाहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना इतना आसान नहीं फिर भी जिसने  अपने दम पर (पढ़ाई के )बाहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला ले भी लिया हो तो बाकी पैसों के लिए ऐसा गलत रास्ता अख्तियार करे ?

यदि धोखे में कर भी लिया तो क्या धोखा  देने वाले को विस्फोटक चाँद न दिखाए खुद हालात से समझौता  कर टमैला चाँद देखने के बजाय ?बहुत से सवाल खड़ा करती है लघु कथा |बधाई विनय भैया 

Comment by विनय कुमार on June 9, 2015 at 1:30am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी , सवाल तो खड़े होते ही हैं , आभार . 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 9, 2015 at 1:08am

अंतिम पंक्ति अचानक से मन में कई सवाल खड़े कर देती है. क्या ख्वाइशे पूरी हो इसलिए कुछ भी करगुजरना, मंजिलों पर पहुंचकर सुकून देता होगा..? प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें ,आदरणीय विनय जी

Comment by विनय कुमार on June 8, 2015 at 8:43pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठीजी .

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 6:21pm

अपनी ख्वाहिशों  की पूर्ति के लिए कुछ भी करना पड़ता है ,,बहुत सुन्दर आ. vinaya kumar singh जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service