उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..
अच्छी लघुकथा ,चाँद के साथ यहाँ सपने और भरोसा वो भी मटमैला हो रहा है |बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , आप की टिप्पणी हमेशा मार्गदर्शन करती है.
बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपके सब प्रश्न जायज़ हैं | दरअसल प्यार और मंज़िलों की चाह , ये दो चीजें इंसान को अँधा बना देती है और अगर ये दोनों साथ मिल जाएँ तो फिर विवेक ख़त्म हो जाता है | आपसे ऐसे ही विश्लेषण की हमेशा उम्मीद रहेगी जिससे अपनी कमियां भी पता चलें |
आ० विनय जी
क्या कहूं , राजेश दीदी का प्रश्न भी जायज है पर विश्वास- कर महिलायें अकसर पतन की और ही जाती है i इस प्रतिभा के लिए यही कहूँगा - जमाने ने मारे जवान कैसे कैसे
जमीं खा गयी आसमान कैसे-कैसे
हालांकि बाहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना इतना आसान नहीं फिर भी जिसने अपने दम पर (पढ़ाई के )बाहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला ले भी लिया हो तो बाकी पैसों के लिए ऐसा गलत रास्ता अख्तियार करे ?
यदि धोखे में कर भी लिया तो क्या धोखा देने वाले को विस्फोटक चाँद न दिखाए खुद हालात से समझौता कर टमैला चाँद देखने के बजाय ?बहुत से सवाल खड़ा करती है लघु कथा |बधाई विनय भैया
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी , सवाल तो खड़े होते ही हैं , आभार .
अंतिम पंक्ति अचानक से मन में कई सवाल खड़े कर देती है. क्या ख्वाइशे पूरी हो इसलिए कुछ भी करगुजरना, मंजिलों पर पहुंचकर सुकून देता होगा..? प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें ,आदरणीय विनय जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठीजी .
अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति के लिए कुछ भी करना पड़ता है ,,बहुत सुन्दर आ. vinaya kumar singh जी |
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