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पिघलता ग्लेसियर ( लघुकथा )

" क्यों नहीं हो सकता ये , मैं रह सकती हूँ तुम्हारे घर तो तुम क्यों नहीं रह सकते मेरे घर शादी के बाद "|
" लेकिन लोग क्या कहेंगे , घर जमाई बन गया | मेरे घरवाले भी तो तैयार नहीं होंगे "|
" जब मुझसे शादी का फैसला किया था , तब क्या लोगों की परवाह की थी तुमने | और तुम्हारे घर तो भैया का परिवार है ही , मैं तो एकलौती लड़की हूँ अपने पेरेंट्स की , उनको कैसे अकेला छोड़ दूँ "|
" ठीक है , मैं घर में बात करता हूँ | क्या हम लोग आते जाते नहीं रह सकते "|
" आते जाते तो हम लोग यहाँ से भी रह सकते हैं , तुम्हें यहाँ रहने में क्या दिक्कत है । हमारी गैरहाजिरी में अगर उनको कुछ हो गया तो , आखिर उनका ध्यान रखना भी तो हमारा दायित्व है "|
" ठीक है , मैं कोशिश करता हूँ "|
" सीधे सीधे क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मेल ईगो आड़े आ रहा है "|
वो निरुत्तर हो गया , बात ने कहीं न कहीं गहरे असर किया था । शायद ग्लेसियर पिघल रहा था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 8, 2015 at 12:33pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2015 at 11:54am

बहुत बढ़िया लघु कथा विनय कुमार जी,शानदार सार्थक बिम्बात्म्क शीर्षक.हार्दिक बधाई स्वीकारें   

Comment by विनय कुमार on July 3, 2015 at 12:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी..

Comment by विनय कुमार on July 3, 2015 at 12:29pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 2:59am

शायद ग्लेसियर पिघल रहा था । ......... कमाल का बिम्ब....एकदम फिट 

बधाई....बधाई....ढेर सारी बधाई ...इस लघुकथा पर आदरणीय विनय जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2015 at 2:31am

बहुत खूब आदरणीय विनय कुमारजी. सार्थक बिम्ब का प्रयोग लघुकथा की संप्रेषणीयता को उपयुक्त संबल दे रहा है.
शुभ-शुभ

Comment by विनय कुमार on June 18, 2015 at 4:09pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेयजी , शुरुआत की ही जरुरत होती है | सादर धन्यवाद..

Comment by Shubhranshu Pandey on June 18, 2015 at 1:15pm

आदरणीय विनय जी.

ग्लेशियर ने पिघलना शुरु किया है. अभी शायद वक्त लगेगा उससे एक नदी के बनने में. सुन्दर कथा.

सादर.

 

Comment by विनय कुमार on June 14, 2015 at 8:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 8:18pm

वाह आ० विनय सरजी,बहुत ही बेहतरीन लघुकथा!!हार्दिक बधाई!!

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