उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी..
ऐसे नहीं होता भाईजी.. प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी.
आदरणीय विनय जी बधाई इस सफल लघुकथा पर
बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी.
भाई विनय कुमार ज़ी,सुन्दर लघुकथा हार्दिक बधाई!
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी .
आदरणीय विनय भाई , समाज के काले पक्ष को दिखाती आपकी कथा के लिये बधाई आपको ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी ..
आदरणीय विनय जी,
सुन्दर कथा. राजेश कुमारी के कथन पर ध्यान देंगे..
सादर.
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