For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - फिल बदीह --- वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है ( गिरिराज भंडारी )

122    122   122   122

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है

वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है

 

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है

 

तबीयत से इक फूँक भारो तो यारों

जलाने को दुनिया, शरारा बहुत है

 

ये मजहब का ठेका हटा लो यहाँ से 

सुकूँ के लिये भाई चारा बहुत है

 

फलक बोस इमारत उन्हें हो मुबारक    --- गगन चुम्बी 

मुझे टूटी छ्त का सहारा बहुत है

 

ऐ साक़ी सुबू तू पिला दे किसी को

मुझे जाम आँखो का प्यारा बहुत है

 

तेरा शुक्रिया ग़म हमेशा कहूंगा 

तपा के , रुला के , निखारा बहुत है 

 

मुझे और खुशियाँ न देना ख़ुदाया

मुझे एक तेरा नज़ारा बहुत है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 874

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 11:10pm

जिंदाबाद! जिंदाबाद! जिंदाबाद! गजल हुयी है!अभिनन्दन आदरणीय!

 

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 14, 2015 at 10:18pm
आदरणीय गजल बहुत ही सुन्दर हुई है बधाई स्वीकार करें

पर आदरणीय
(मै तक़्सीम कर दूँ , मेरी सारी दौलत बाँट दूँ
मगर देश बांटूँ , गवारा नहीं है)
यह शे'र जो मैं नहीं समझ पाया यह तो तुकान्त से परे प्लीज मुझे समझाए सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 14, 2015 at 6:16pm

आदरणीय वीनस भाई , एक लब्मे अरसे के बाद आपसे  '' खुश दिया '' मिला ।  मन प्रसन्न है । और अच्छा कह सकूँ इसका प्रयास करता रहूँगा । आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 14, 2015 at 6:13pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 14, 2015 at 6:13pm

आदरणीया राजेश जी , हौअला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया , टंकण त्रुटि बताने का आभार ।

Comment by वीनस केसरी on June 14, 2015 at 3:02pm

वाह जनाबे आली दिल खुश कर दिया
बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 14, 2015 at 12:28pm

बहुत बढ़िया , बहुत सुन्दर अनुज

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 14, 2015 at 12:05pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० गिरिराज जी ,

जो कहते थे उनको इशारा बहुत है

वो सुनते नहीं कुछ , पुकारा बहुत है----वाह्ह्ह 

 

ऐ तन्हाई आ मेरी जानिब चली आ

कि यादों को तेरा सहारा बहुत है---क्या कहने 

तबीयत से इक फूँक भारो तो यारों--फूँक मारो ....टंकण त्रुटी को ठीक कर लें 

जलाने को दुनिया, शरारा बहुत है

 

 

फलक बोस इमारत उन्हें हो मुबारक    

मुझे टूटी छ्त का सहारा बहुत है---बहुत खूब 

दिल से बधाई आपको 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
57 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
17 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service