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अंतर्द्वंद ( लघुकथा )


" दिमाग ख़राब हो गया है इस लड़की का ", मम्मी बुरी तरह परेशान थीं । इतना अच्छा घर और वर था फिर भी मना कर दिया । अपने आप को कोस रही थीं कि क्यों सब बता दिया उसको ।
" आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , इतने अस्पृह कैसे रह सकते हैं आप लोग "।
" अरे , घर में कौन काम करता है , इसमें तुम्हे क्या दिक़्क़त है "।
" माँ , जो इंसान अपने घर में एक बच्चे के काम करने पर इतना संवेदनहीन हो सकता है , वो मेरे प्रति संवेदनशील रह पायेगा "?
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on June 25, 2015 at 10:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 3:55am

सफल और  सशक्त लघुकथा। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई, आदरणीय विनय जी।

Comment by विनय कुमार on June 17, 2015 at 11:58pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी , सादर धन्यवाद ..

Comment by Omprakash Kshatriya on June 17, 2015 at 6:30pm

आदरणीय विनयकुमार जी ,

आप ने कम शब्दों माँ बहुत कुछ कह दिया है . चावल की हांड़ी से एक ही चावल देखा जाता है , उसी से सरे चावल के बारे में पता चल जाता है . आप की लघुकथा इसी को सार्थक करती है.

बधाई आप को .

Comment by विनय कुमार on June 17, 2015 at 4:14pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी , कहानी के मर्म तक आप पहुंचे , शुक्रिया..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 3:02pm

बहुत ही उम्दा रचना है ..चावल पका है की नहीं सिर्फ एक दाना ही देखा जाता है ..जिसके दिल में संवेदना न हो वो मनुष्य दूसरो की इज्जत करेगा इसमें संसय ही है ..इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई सादर 

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 9:35pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी.

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 6:34pm

सुन्दर सशक्त लघु कथा। हारदिक बधाई, आदरणीय विनय जी।

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 2:21pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2015 at 1:44pm

बालश्रम  जो संवेदन हीनता से जन्मा एक अपराध है जिसके खिलाफ सरकार भी जागरूक करती रहती है लघु कथा के मर्म में अच्छे विषय ने स्थान पाया है लड़की समझदार है ..बहुत अच्छा सन्देश/प्रेरणा  देती हुई सफल लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई आपको 

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