" दिमाग ख़राब हो गया है इस लड़की का ", मम्मी बुरी तरह परेशान थीं । इतना अच्छा घर और वर था फिर भी मना कर दिया । अपने आप को कोस रही थीं कि क्यों सब बता दिया उसको ।
" आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , इतने अस्पृह कैसे रह सकते हैं आप लोग "।
" अरे , घर में कौन काम करता है , इसमें तुम्हे क्या दिक़्क़त है "।
" माँ , जो इंसान अपने घर में एक बच्चे के काम करने पर इतना संवेदनहीन हो सकता है , वो मेरे प्रति संवेदनशील रह पायेगा "?
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी.
सफल और सशक्त लघुकथा। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई, आदरणीय विनय जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी , सादर धन्यवाद ..
आदरणीय विनयकुमार जी ,
आप ने कम शब्दों माँ बहुत कुछ कह दिया है . चावल की हांड़ी से एक ही चावल देखा जाता है , उसी से सरे चावल के बारे में पता चल जाता है . आप की लघुकथा इसी को सार्थक करती है.
बधाई आप को .
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी , कहानी के मर्म तक आप पहुंचे , शुक्रिया..
बहुत ही उम्दा रचना है ..चावल पका है की नहीं सिर्फ एक दाना ही देखा जाता है ..जिसके दिल में संवेदना न हो वो मनुष्य दूसरो की इज्जत करेगा इसमें संसय ही है ..इस रचना के लिए ह्रदय से बधाई सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी.
सुन्दर सशक्त लघु कथा। हारदिक बधाई, आदरणीय विनय जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी.
बालश्रम जो संवेदन हीनता से जन्मा एक अपराध है जिसके खिलाफ सरकार भी जागरूक करती रहती है लघु कथा के मर्म में अच्छे विषय ने स्थान पाया है लड़की समझदार है ..बहुत अच्छा सन्देश/प्रेरणा देती हुई सफल लघु कथा हेतु हार्दिक बधाई आपको
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