2122 2122 2122 2
फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन फा
हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते
आप भी है जिद में मेरे दर नहीं आते
बेबसी महबूब की किस भाँति समझाऊँ
आज भी उनको मेरे चश्मेतर नहीं भाते
जिन्दगी बीती है उनकी सूफियाना सी
मस्त तो है रहते साजो पर नहीं गाते
इश्क में हूँ जांबलब मेरा भरोसा क्या
फ़िक्र उनको कब है चारागर नहीं लाते
एक साया उसका बांटी जिन्दगी हमने
अन्यथा जीवन में कुछ भी कर नहीं पाते
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० समर कबीर साहिब आपने बिलकुल सही फरमाया . हम नौशिखिये भटक ही जाते हैं , मुआफी चाहता हूँ . सादर .
प्रिय कृष्णा
आपकी शुभ कामना काआभार .
आ० समीर कबीर जी
राहुल जी ने जो कहा उससे मैं भी सहमत हूँ , कृपया कुछ और तजबीज कीजिये . सादर .
जिन्दगी बीती है उनकी सूफियाना सी
मस्त तो है रहते साजो पर नहीं गाते
ख़ूब आ० गोपाल सर! आ० आप स्वयम में सक्षम है गजल सीखने में ये त्रुटीयां आम है,अभ्यास धीरे धीरे इन्हें दूर करेगा!नमन!
आ० नीलेश जी
आप् जैसे गुनी जनो से जो हौसला मिलता है उसी के बल पर अपने को आजमा रहा हूँ . बस प्यार बना रहे . . सादर .
आ० सोमेश
गजल विधा पर मेरे कदम नए है , जब मैं हिन्दी का छात्र था तब तक हिंदी में गजल विधा स्थापित नहीं हुयी थी . पर कोशिश जारी है .
बहुत कूब प्रयास है आदरणीय ..वरिष्ठजनों ने सुधार सुझाएँ हैं अत: उस विषय पर कुछ नहीं कहूँगा. आप की लगन और ग़ज़ल के प्रति प्रेम बस ऐसे ही बना रहे..यही दुआ है.
मुझे लगता है कि आप लय के अनुसार लिख रहे हैं जो अच्छी बात है लेकिन बाद में हर मिसरे की तक्तीअ (मात्रा गणना) करने से आप स्वयं ये जान पाएँगे कि चूक कहाँ हो रही है ..
सादर
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