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वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में ( © परी ऍम. 'श्लोक' )

१ २ २ २ १ २ १ २ २ २
पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में

चले जायेंगे जां तेरी लेकर
बने बुत से जियोगे लोगों में

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
बेहिस चलते रहोगे लोगों में

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रास्ता तकोगे लोगों में

मिलेगी फिर नहीं कभी जानाँ
वफ़ा ढूंढा करोगे लोगों में

© परी ऍम. 'श्लोक'

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:39pm

वाह .. अच्छा अभ्यास चल रहा है, परीजी..

शुभेच्छाएँ

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 1:59am

वाह शानदार ग़ज़ल थी ....
सुधार के बाद और शानदार हो गयी है ...

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 12:58pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका तहे दिल से शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए व हमारे अनुरोध पर यहाँ उपस्थित हो टिप्पणी देने के लिए :)

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 12:44pm

आ परी जी, बहुत बढ़िया संशोधन.... संशोधन के बाद अशआर निखर गए है -

पुकारा तुम करोगे लोगों में
नहीं फिर पा सकोगे लोगों में ..........बेहतरीन

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
भटकते तुम फिरोगे लोगों में ............ भटकते का बढिया प्रयोग .... शानदार शेर 

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रस्ता तकोगे लोगों में ...... बढ़िया शेर.....दिल से दाद हाज़िर 

आपके सीखने का उत्साह और लगन देखकर सकारात्मक आभास हो रहा है और यकीन है कि आपके अभ्यास के क्रम में बेहतरीन ग़ज़लों से मंच समृद्ध होगा. शुभकामनायें 

सादर 

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 11:11am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के शेर दर शेर सुझाव के बाद हमने ग़ज़ल में सुधार किया है वो तीन शेर जिसमें गलती थी उसे ठीक करके कमेंट में डाल रहे हैं आप सब की राय चाहिए मिथिलेश वामनकर जी से अनुरोध है कि कृपया वो बतायें क्या सुधार की कोशिश सही रही।


पुकारा तुम करोगे लोगों में
नहीं फिर पा सकोगे लोगों में (1)

कटेगा भी नहीं सफ़र तन्हा
भटकते तुम फिरोगे लोगों में (3)

मेरे जाने के बाद मुद्दत तक
मेरा रस्ता तकोगे लोगों में (4)

© परी ऍम. 'श्लोक'
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:36am
आपके द्वारा दिए गया लिंक पढ़ कर और जानकारी हासिल करेंगे मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया लिंक भेजने के लिए !
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:34am
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी हम अच्छे से नियम पढ़ेंगे बेशक बहुत ज़रूरी है नियम कायदे ग़ज़ल के जान लेना अच्छी ग़ज़ल कह पाने को। मार्गदर्शन हेतु शुक्रिया सर ...!
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:31am
MAHIMA SHREE ji बहुत बहुत आभार।
Comment by Pari M Shlok on July 3, 2015 at 9:29am
shree suneel जी टिप्पणी के लिए दिल से आभार
Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 9:25pm
पुकारा तुम करोगे लोगों में
मुझे ना पा सकोगे लोगों में.. ख़ूब.. ख़ूब.
ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही आपने आदरणीया. बधाइयाँ आपको.
बाकी.. गुणीजनो ने की राय आपके पास है हीं.

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