नीरवताएँ
दुखपूर्ण भावों से भीतर छिन्न-भिन्न
साँस-साँस में लिए कोई दर्दीली उलझन
मेरे प्राण-रत्न, प्रेरणा के स्रोत
तुम कुछ कहो न कहो पर जानती हूँ मैं
किसी रहस्यमय हादसे से दिल में तुम्हारे
है अखंडित वेदना भीषण
चोट गहरी है
दुख का पहाड़ है
दुख में तुम्हारे .. तुम्हारे लिए
दुख मुझको भी है
रंज है मुझको कि संवेदन-प्रेरित भी
मैं कुछ कर नहीं पाती
खुले रिसते घाव को तुम्हारे
सी नहीं पाती ...
यह मेरी बदनसीबी है
अग्निमय प्रश्नों की चिनगियों से अनवस्थ
वेदनामयी मुस्कान लिए ओंठों के कोरों पर
जब तुमने कहा कल कि मन-ही-मन
मनहूस पीड़ा से कहीं दूर चले जाना चाहते हो
पर बहती पीड़ा की गति जो परसों थी
कल थी और आज भी
गतिशील अनवरत कहीं भी वह
ज्वाला की फूंक बनी तुम्हारे साथ जाएगी
तड़पाएगी
पीड़ा की धारा को केवल वही सोख सकता है
जिससे अमुक अनवलंबित पीड़ा मिली हो
नए सुख आएँगे
पर परतों के नीचे के इतिहास से
लोट-लोट आएँगी रात-बेरात अचानक पुरानी
नीरव आवाज़ें
उफ़नती पुरानी अपरिमित पीड़ा की
चिलचिलाती-चिलकती झकझोरती यादों की
अकुलाएगा बेकाबू मन रातों अंधेरे की थाहों में
-----
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//बेहतरीन . अकल्पनीय भाव , भूरि भूरि बधाई//
आपसे ऐसी सराहना मिलना अति आश्वासी है। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
//बहुत असीम परतो में दबी अकुलाहट को शब्द दे नीरव शांत जल के निचे की भंवर को उभार दिया है आपने //
आपकी भावाभिव्यक्ति मेरी प्रेरणा का स्रोत है l उत्साहवर्धन हेतु बहुत धन्यवाद, आदरणीय सुनील प्रसाद जी।
आदरणीय मोहन सेठी जी, रचना की सराहना के लिए मैं आभारी हूँ। हार्दिक धन्यवाद।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय श्री सुनील जी।
वक़्त पीडाओं को कम नहीं करता बस उनके ऊपर एक हलकी सी पर्त चढ़ा देता है i समय के और दुनियादारी निभाने की मजबूरियों के साथ ये पर्त मोटी होती जाती है पर कभी ऐसा होता है कि उस पूरी पर्त के चिंदे उड़ जाते हैं और नीचे का जख्म फिर उभर आता है time is not a healer , but is only a concealer , मार्मिक रचना के लिए बधाई आ० विजय जी
//पढते हुए दूर कहीं ले जाता है अवचेतन मन को .....//
रचना के मर्म के साथ आत्मसात होने के लिए आभार, आदरणीया कान्ता जी।
आदरणीय विजय निकोर सर, जीवन की परतों में दबी, व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति, ह्रदय को छूकर संवेदना को जागृत करने में सफल हुई इस सशक्त रचना की प्रस्तुति पर बधाई
आदरणीय विजय निकोर जी
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
//पीड़ा की धारा को केवल वही सोख सकता है
जिससे अमुक अनवलंबित पीड़ा मिली हो
नए सुख आएँगे
पर परतों के नीचे के इतिहास से
लोट-लोट आएँगी रात-बेरात अचानक पुरानी
नीरव आवाज़ें//
आपकी अभिव्यक्तियों के निहितार्थ संवेदनशील पाठक ह्रदय को गहन स्पर्श करते हैं.
सादर बधाई इस प्रस्तुति पर
आ० निकोर जी
आपके उस प्रेरणा स्रोत को नमन . कविता की यह पंक्तियाँ -
नए सुख आएँगे
पर परतों के नीचे के इतिहास से
लोट-लोट आएँगी रात-बेरात अचानक पुरानी
नीरव आवाज़ें
उफ़नती पुरानी अपरिमित पीड़ा की
चिलचिलाती-चिलकती झकझोरती यादों की
अकुलाएगा बेकाबू मन रातों अंधेरे की थाहों में---------------- बेहतरीन . अकल्पनीय भाव , भूरि भूरि बधाई . सादर.
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