पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।
अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे खर्च का हिसाब दिया तो वो सर पकड़ कर बैठ गया । अभी तो अगले तेरह दिन तमाम कर्मकांड होने थे और उसके बाद ब्राह्मणभोज जिसमें पूरा गाँव और रिश्तेदारों को खिलाना था ।
शायद इन कर्मकाण्डों में उसके सर से माँ , बाप के बाद खेतों का साया भी उठ जाये, अब वो पूरी तरह से अनाथ हो गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बढ़िया आ० विनय सर! सादर बधाई
वाकई पूरी तरह अनाथ हो गया था, बहुत सुन्दर। साधुवाद।
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी, समय के साथ बदलाव जरुरी है ..
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए..
बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी ..
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीया शशि बंसल जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए.
इस प्लाट पर पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है, हालाकि अब समय बदला है और यदि दिखावा को छोड़ दें तो ये कर्मकांड अपने हैसियत के अनुसार किये जा सकते हैं. पुनः इस विषय को लेकर आने हेतु बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.
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