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पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।
अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे खर्च का हिसाब दिया तो वो सर पकड़ कर बैठ गया । अभी तो अगले तेरह दिन तमाम कर्मकांड होने थे और उसके बाद ब्राह्मणभोज जिसमें पूरा गाँव और रिश्तेदारों को खिलाना था ।
शायद इन कर्मकाण्डों में उसके सर से माँ , बाप के बाद खेतों का साया भी उठ जाये, अब वो पूरी तरह से अनाथ हो गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 3:05pm

बहुत बढ़िया आ० विनय सर! सादर बधाई

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 5, 2015 at 12:41pm

वाकई पूरी तरह अनाथ हो गया था, बहुत सुन्दर। साधुवाद।

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी, समय के साथ बदलाव जरुरी है ..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:17pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी ..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:15pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:15pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया शशि बंसल जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 5, 2015 at 9:20am
आदरणीय विनयजी सुन्दर कथा। सदियो से चली आ रही ये प्रथा समय के साथ एक कुप्रथा ही बन कर रहगयी है जो ना जाने कितने परिवारो को गरीबी और कर्जो के चंगुल में फंसा लेती है।
इस बेहतरीन कथा के लिये सादर बधाई स्वीकार करे।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 11:01pm
आदरणीय विनय जी बहुत बढ़िया लघुकथा।
दिखावे की प्रथा बंद होनी ही चाहिए।
बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 10:39pm

इस प्लाट पर पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है, हालाकि अब समय बदला है और यदि दिखावा को छोड़ दें तो ये कर्मकांड अपने हैसियत के अनुसार किये जा सकते हैं. पुनः इस विषय को लेकर आने हेतु बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.

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