" अरे ,रे , ये क्या कर दिया तूने | काट दिया उस पौधे को भी घाँस के साथ "| शर्माजी एकदम से चिल्ला पड़े उस छोटी लड़की पर जिसने उनसे उनकी लॉन में से घाँस काटने के लिए पूछा था |
पेपर को किनारे रखते हुए वो उठे और लगभग धक्का देते हुए उसे लॉन से बाहर निकाल दिया | " पता नहीं फिर ये अंकुरित होगा या नहीं , कितने प्यार से लगाया था "|
छोटी लड़की उदास बाहर निकल गयी | पेपर उड़ कर घाँस पर आ गिरा , उसमे हेडलाइंस चमक रही थीं " इस साल फिर एक लड़की ने टॉप किया सिविल सर्विसेज में "|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय आमोद बिंदौरी जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेयजी । आपका अनुमोदन मिल जाने पर बहुत संतुष्टि मिलती है ..
आपने प्रस्तुत लघुकथा की लघुता में जैसी व्यापकता समाविष्ट किया है उसके लिए हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी,..
शुभ-शुभ
बहुत बहुत आभार आदरणीय ओम प्रकाश जी ..
प्रतीकात्मक व जानदार लघुकथा कही है आप ने आ विनय कुमार सिंह जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी , सादर धन्यवाद..
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आपकी टिप्पणियाँ हमेशा उत्साह बढाती हैं | इसी तरह समीक्षा और मार्गदर्शन करते रहें हमारा , सादर धन्यवाद..
बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी , आप ने तो सच में इसे गद्य से पद्य बना दिया | सादर धन्यवाद.
आदरणीय विनय कुमार जी आपकी इस प्रभावी लघुकथा का सारांश PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी ने बहुत सुन्दरता से कह दिया ...बहुत बधाई ....सादर
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