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चेप्टर-२ - विविध दोहे

चेप्टर-२ - विविध दोहे

बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय
वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय

न्यून  वस्त्र  में आ गयी, वर्तमान  की नार
लोक लाज  बिसराय  के, करें नैन तकरार

औछे  करमन से भला, कैसे सदगति होय
जैसी संगत  साथ हो,  वैसी  ही मति होय

पुष्प  छुअन  में शूल से,  कैसे दर्द न होय
टूट  के डारि  से भला,  काहे  पुष्प न रोय

आँख मूँद कर भजने से, कब मिलते भगवान
प्रेम अगर हो सूर सा,  आन  मिलें  घनश्याम

इत  उत  किसको  ढूंढता,  रे   पगले   इंसान
कस्तूरी   मृग   ज्यूँ बसे ,  प्रभु तुझमें नादान


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by savitamishra on July 9, 2015 at 10:33pm

बहुत खूब दोहे लिखे आदरणीय....नमस्ते

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 8:21pm

आदरणीय  सुशील सरना जी सादर, बहुत  सुन्दर  दोहे  रचे  हैं. बहुत-बहुत  बधाई स्वीकारें. 

ढोंगी या संसार  में, मिला  न  अपना कोय 
वर्तमान  की  प्रीत में, बस  धोखा  ही होय.......वाह  ! 

दोहे  के समचरणों में तुकांत  ही  मान्य  है. इस आधार  पर  अपने  पहले  और  चौथे  दोहे  को ठीक कर  लें. //आँख मूँद कर भजने से//... इस चरण की मात्राएँ एक  बार  जांच  लें. सादर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 8:05pm
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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