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ग़ज़ल - तो मै इंसान होने से मुकरना चाहता हूँ ( गिरिराज भंडारी )

1222   1222   1222   122

क़रीब आ ज़िन्दगी, तुझको समझना चाहता हूँ

मैं ज़र्रा हूँ ,  तेरी बाहों में  फिरना चाहता हूँ

 

समेटा खूब , खुद को, पर बिखरता ही गया मैं

ग़ुबारों की तरह अब मैं बिखरना चाहता हूँ

 

जमा हर दर्द मेरा एक पत्थर हो गया है

ज़रा सी आँच दे , अब मैं पिघलना चाहता हूँ

 

तेरी आँखों मे देखी थी कभी तस्वीर खुद की

जमाना हो गया , मै फिर सँवरना चाहता हूँ

 

लगा के बातियाँ उम्मीद की ,दिल के दिये में

मैं सारी रात , तनहाई में जलना चाहता हूँ

 

सुना , चुभने लगा है अब उजाला भी किसी को

ख़ुदा हाफिज़ ! यहाँ से अब निकलना चाहता हूँ

 

बुना मेरे अहम ने जाल , मै ही फँस गया हूँ

तड़पता हूँ , कि मैं बाहर निकलना चाहता हूँ

 

अगर  इंसान कहते  हैं इन्हें, जो जी रहे हैं

तो  मै  इंसान  होने से  मुकरना  चाहता हूँ

******************************************

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 15, 2015 at 6:48am

आदरणीय श्री सुनील भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by shree suneel on July 14, 2015 at 10:25pm
ख़ूबसूरत ग़ज़ल, ख़ूबसूरत अशआर, ख़ूबसूरत तसव्वुर. बधाई.. बधाई.. बधाई आपको आदरणीय.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2015 at 10:20am

आदरणीय कृष्णा भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2015 at 10:18am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभार ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 13, 2015 at 10:09am

जमा हर दर्द मेरा एक पत्थर हो गया है

ज़रा सी आँच दे , अब मैं पिघलना चाहता हूँ

 

तेरी आँखों मे देखी थी कभी तस्वीर खुद की

जमाना हो गया , मै फिर सँवरना चाहता हूँ

 

लगा के बातियाँ उम्मीद की ,दिल के दिये में

मैं सारी रात , तनहाई में जलना चाहता हूँ

लाजवाब आदरणीय,शेर दर शेर दाद कुबूल करें!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 13, 2015 at 9:22am

आ० अनुज

बहुत बढ़िया .

सुना , चुभने लगा है अब उजाला भी किसी को

ख़ुदा हाफिज़ ! यहाँ से अब निकलना चाहता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2015 at 10:01pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2015 at 9:52pm

ख़ूबसूरत अश’आर के लिए दाद कुबूल करें, आदरणीय गिरिराज जी


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2015 at 10:52am

आ. राहुल भाई , आपका शुक्रिया ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 12, 2015 at 7:44am
आदरणीय बधाई स्वीकार करें अच्छी गजल हेतु

कृपया ध्यान दे...

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