“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.
बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”
“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”
“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”
“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”
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११/०७/२०१५
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया kanta roy जी
आप को लघुकथा पसंद आई. आप ने इस के मर्म को खूबसूरती से प्रस्तुत किया. इस के लिए आप का ह्रदय से आभारी हूँ.
आदरणीय Madanlal Shrimali जी
आप की टिपण्णी पढ़ कर मन खुश हो गया. आप को लघुकथा अच्छी लगी .//कहते है बुढ़ापे में औलाद ही माँ बाप की आँखे होती है// और जब आंखे साथ छोड़ जाए तो आदमी बेसहारा हो जाता है.
शुक्रिया आप का
आदरणीय vinaya kumar singh जी आप ने लघुकथा की सार्थकता पर सार्थक बात कही है . आप ने इसे एक सफल लघुकथा माना है. यह मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है. एक लघुकथाकार की लघुकथा सफल हो जाए, इस से बड़ी ख़ुशी उस के लिए और क्या हो सकती है. आप का आभार .
आदरणीय PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA जी
सादर प्रणाम.
आप ने शानदार बात कही -//आप को दिखाई नहीं देता है.// के बगैर कम नही चल सकता था क्या ?//
जी हां. मगर मेरा ध्यान ही नहीं गया. आप ने यह कमी बताई . आभारी हूँ. इस को हटाने से लघुकथा में और कसावट आ जाएगी श्रीमान.
आभार आप का
बुढ़ापे में तो औलाद आजकल ख़ुदा के घर ही भेजने की जल्दी में रहती है वालिदैन को , बहुत बेहतरीन लघुकथा । इतने कम शब्दों में आपने अपना सन्देश स्पष्ट कर दिया , यही इसकी सफलता है । बहुत बहुत बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी ..
//आखिर इस अंधे को गिरा दिया.//--ठीक है
फिर आदरणीय जी
//आप को दिखाई नहीं देता है.// के बगैर कम नही चल सकता था क्या ?
बढ़िया कथा , कलियुगी पुत्र की कहानी , बधाई सादर
अच्छी लघुकथा है आदरणीय ओमप्रकाश जी, दाद कुबूल कीजिए
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