For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लंच बॉक्स (लघुकथा)

"मैंने अपना लंच बॉक्स खुद पैक कर लिया है, निकल रहा हूँ मै।"
"आज इतनी जल्दी क्या है निखिल को' रचना सोचने लगी I
उसने बाहर कमरे में आकर समय देखा, दस बज गए थेI आज उसे हर हाल में दो बजे से पहले पोस्ट ऑफिस जाकर अपनी कविता पोस्ट कर देनी है I लगभग एक महीने पहले अपने बेटे को हिंदी कविता पढ़ाते समय उसके दिमाग़ में एक बहुत पुराना दबा हुआ कीड़ा फिर रेंगने लगा थाI कॉलेज के दिनों में वो कविता लिखती थी और तारीफ भी पाती थीI फिर सब छूट गयाI कुछ दिन पहले एक अखबार में उसने कविता भेजने का आमंत्रण पढ़ कर कविता लिखने की ढान ली और कविता लिख भी ली I बहुत उत्साहित थी वो I
"पर वो कविता वाला पन्ना गया कहाँ ? यहीं तो रखा था डाइनिंग टेबल पर I" रचना रुआंसी होकर ढूंढे जा रही थी, पर वो पन्ना कहीं नहीं मिला I उसका मन कर रहा था कि जोर जोर से रोये I
शाम को निखिल घर आये तब भी वो अनमनी थी I रसोई में धोने के लिए निखिल का लंच बॉक्स ले गई, और जैसे ही वो खोला सामने सब्जी के तेल में सना उसकी कविता का पन्ना मुहँ चिढ़ा रहा थाI निखिल पीछे खड़े थे "क्या हुआ ? कोई काम का पन्ना था क्या ?'
"मेरी कविता थी " वो रुलाई सँभालते हुए बोली
"तुम्हारी कविता ? ओहो, चलो ये भी धन्य हो गई तुम्हारे हाथ की सब्जी खाकरI" वो अपने कमरे में चल दिए I
रचना के अन्दर दो मन लड़ रहे थेI एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन, जो कह रहा था कि बेचारे निखिल ने हड़बड़ी में बिना जाने वो पन्ना रख लिया था सब्जी के नीचे। और दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी ............

.

मौलिक  व्  अप्रकाशित 

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on July 13, 2015 at 6:46pm

रचना  के  ह्रदय  का द्वन्द  और  पीड़ा  आपने  सही  समझी Iइस  प्रतिक्रिया  के  लिए  आपका  तहे  दिल से आभार आ० राजेश कुमारी जीI 

Comment by pratibha pande on July 13, 2015 at 6:41pm

आ० मिथिलेश वामनकर जी आपकी  प्रतिक्रिया  के  लिए     हार्दिक  आभार I


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2015 at 2:29pm

एक गृहणी जो उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए खुद को भुला देती है अचानक उसके अन्दर की कला/हुनर अपना पुनर्जीवन चाहती है उस पर भी सामने वाले के द्वारा हतोत्साहित कर देना ..नारी के मानसिक मंथन को बखूबी लघुकथा की शक्ल में ढाल कर सफल अंजाम दिया है प्रतिभा जी ,बहुत बहुत बधाई   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 12, 2015 at 10:49pm

आदरणीया प्रतिभा जी, बढ़िया लघुकथा हुई है. एक गृहणी और एक नारी के मानसिक द्वंद और संश्लिष्ट मन की सुन्दर अभ्व्यक्ति हुई है. यह भी अवश्य है कि ऐसे कथानक से न्याय करना कठिन होता है किन्तु आपने उस द्वंद को बड़ी ही सहजता से शाब्दिक किया है. लघुकथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है और कथातत्व सोचने के लिए विवश भी करता है. इस सशक्त प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 12, 2015 at 9:09pm

कंडीशनिंग - नही समझ पा रहा था . आपने मुझे मान  दे कर समय दिया आभार . 

माहोल , आस पास की परिस्थितियां , वाता वरण  , वाह . बधाई स्वीकारें 

Comment by pratibha pande on July 12, 2015 at 8:51pm

lलंबे समय तक किसी एक माहौल , मान्यताओं और व्यक्तियों  के  साथ रहने से, हमारा दिमाग़ एक ख़ास  तरह से सोचने या प्रतिक्रिया देने का आदि हो जाता है I ये  कंडीशनिंग है I  हम  सबकी लगभग ८०  प्रतिशत प्रतिक्रियाएं  कंडिशन्ड  होती  हैं I रचना  का कंडिशन्ड दिमाग  उसे ये  सोचने की आज़ादी नही दे रहा है कि उसके पति ने जान बूझ  कर वो पन्ना लंच बॉक्स में रखा I दूसरी  तरफ  है उसका  नया  नया  उगा साहसी कवि मन  जो कंडिशन्ड  नहीं है  और वो पति पर शक करता है I शक करने की वजह भी है , पति का खुद लंच पैक  करने की जल्दी  दिखाना , और ये पता चलने  पर भी कि वो पन्ना  कविता  है ,  पति  को कोई  अपराध  बोध  नहीं होताI

आ० प्रदीप कुमार जी ,  आपने कथा को पढ़ा  और अपनी  अमूल्य  टिपण्णी दी , आपका हार्दिक आभार I आगे भी  आपके  प्रोत्साहन  की आकांक्षी  रहूंगी  I

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 12, 2015 at 6:59pm

युवा  अवस्था में लगभग ४० प्रतिशत शायरी, कविता आदि लिखते हैं . डायरी भी होती है . फिर व्यस्त जीवन के कारण  बहुत कम लोग ही लोग रचना कर्म और रचना धर्म निभा पाते हैं .  

स्वाभाविक है  परिस्थितियाँ  फिर लेखन की ओर ले जाती हैं . 

//रचना के अन्दर दो मन लड़ रहे थेI एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन, जो कह रहा था कि बेचारे निखिल ने हड़बड़ी में बिना जाने वो पन्ना रख लिया था सब्जी के नीचे। और दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी .......// 

 ''// एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन,// अर्थ समझ नही पाया सादर 

// दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी ............//--अविश्वाश का कारण --निखिल या उसका पारिवार  ..लिखने के खिलफ रहा हो , ऐसा तों नही लगता .

मैं सीखने की प्रक्रिया में हूँ , प्रश्न इस लिए हैं , कृपया अन्यथा न लेंगी , सादर , सधी हुई , सुन्दर रचना हेतु बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service