"मैंने अपना लंच बॉक्स खुद पैक कर लिया है, निकल रहा हूँ मै।"
"आज इतनी जल्दी क्या है निखिल को' रचना सोचने लगी I
उसने बाहर कमरे में आकर समय देखा, दस बज गए थेI आज उसे हर हाल में दो बजे से पहले पोस्ट ऑफिस जाकर अपनी कविता पोस्ट कर देनी है I लगभग एक महीने पहले अपने बेटे को हिंदी कविता पढ़ाते समय उसके दिमाग़ में एक बहुत पुराना दबा हुआ कीड़ा फिर रेंगने लगा थाI कॉलेज के दिनों में वो कविता लिखती थी और तारीफ भी पाती थीI फिर सब छूट गयाI कुछ दिन पहले एक अखबार में उसने कविता भेजने का आमंत्रण पढ़ कर कविता लिखने की ढान ली और कविता लिख भी ली I बहुत उत्साहित थी वो I
"पर वो कविता वाला पन्ना गया कहाँ ? यहीं तो रखा था डाइनिंग टेबल पर I" रचना रुआंसी होकर ढूंढे जा रही थी, पर वो पन्ना कहीं नहीं मिला I उसका मन कर रहा था कि जोर जोर से रोये I
शाम को निखिल घर आये तब भी वो अनमनी थी I रसोई में धोने के लिए निखिल का लंच बॉक्स ले गई, और जैसे ही वो खोला सामने सब्जी के तेल में सना उसकी कविता का पन्ना मुहँ चिढ़ा रहा थाI निखिल पीछे खड़े थे "क्या हुआ ? कोई काम का पन्ना था क्या ?'
"मेरी कविता थी " वो रुलाई सँभालते हुए बोली
"तुम्हारी कविता ? ओहो, चलो ये भी धन्य हो गई तुम्हारे हाथ की सब्जी खाकरI" वो अपने कमरे में चल दिए I
रचना के अन्दर दो मन लड़ रहे थेI एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन, जो कह रहा था कि बेचारे निखिल ने हड़बड़ी में बिना जाने वो पन्ना रख लिया था सब्जी के नीचे। और दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी ............
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मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
रचना के ह्रदय का द्वन्द और पीड़ा आपने सही समझी Iइस प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से आभार आ० राजेश कुमारी जीI
आ० मिथिलेश वामनकर जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार I
एक गृहणी जो उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए खुद को भुला देती है अचानक उसके अन्दर की कला/हुनर अपना पुनर्जीवन चाहती है उस पर भी सामने वाले के द्वारा हतोत्साहित कर देना ..नारी के मानसिक मंथन को बखूबी लघुकथा की शक्ल में ढाल कर सफल अंजाम दिया है प्रतिभा जी ,बहुत बहुत बधाई
आदरणीया प्रतिभा जी, बढ़िया लघुकथा हुई है. एक गृहणी और एक नारी के मानसिक द्वंद और संश्लिष्ट मन की सुन्दर अभ्व्यक्ति हुई है. यह भी अवश्य है कि ऐसे कथानक से न्याय करना कठिन होता है किन्तु आपने उस द्वंद को बड़ी ही सहजता से शाब्दिक किया है. लघुकथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है और कथातत्व सोचने के लिए विवश भी करता है. इस सशक्त प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
कंडीशनिंग - नही समझ पा रहा था . आपने मुझे मान दे कर समय दिया आभार .
माहोल , आस पास की परिस्थितियां , वाता वरण , वाह . बधाई स्वीकारें
lलंबे समय तक किसी एक माहौल , मान्यताओं और व्यक्तियों के साथ रहने से, हमारा दिमाग़ एक ख़ास तरह से सोचने या प्रतिक्रिया देने का आदि हो जाता है I ये कंडीशनिंग है I हम सबकी लगभग ८० प्रतिशत प्रतिक्रियाएं कंडिशन्ड होती हैं I रचना का कंडिशन्ड दिमाग उसे ये सोचने की आज़ादी नही दे रहा है कि उसके पति ने जान बूझ कर वो पन्ना लंच बॉक्स में रखा I दूसरी तरफ है उसका नया नया उगा साहसी कवि मन जो कंडिशन्ड नहीं है और वो पति पर शक करता है I शक करने की वजह भी है , पति का खुद लंच पैक करने की जल्दी दिखाना , और ये पता चलने पर भी कि वो पन्ना कविता है , पति को कोई अपराध बोध नहीं होताI
आ० प्रदीप कुमार जी , आपने कथा को पढ़ा और अपनी अमूल्य टिपण्णी दी , आपका हार्दिक आभार I आगे भी आपके प्रोत्साहन की आकांक्षी रहूंगी I
युवा अवस्था में लगभग ४० प्रतिशत शायरी, कविता आदि लिखते हैं . डायरी भी होती है . फिर व्यस्त जीवन के कारण बहुत कम लोग ही लोग रचना कर्म और रचना धर्म निभा पाते हैं .
स्वाभाविक है परिस्थितियाँ फिर लेखन की ओर ले जाती हैं .
//रचना के अन्दर दो मन लड़ रहे थेI एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन, जो कह रहा था कि बेचारे निखिल ने हड़बड़ी में बिना जाने वो पन्ना रख लिया था सब्जी के नीचे। और दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी .......//
''// एक पंद्रह साल के वैवाहिक जीवन में कंडीशन हुआ मन,// अर्थ समझ नही पाया सादर
// दूसरा मन जो अभी कुछ दिन पहले ही उगा था, कह रहा था, नहींi ये हड़बड़ी नहीं थी ............//--अविश्वाश का कारण --निखिल या उसका पारिवार ..लिखने के खिलफ रहा हो , ऐसा तों नही लगता .
मैं सीखने की प्रक्रिया में हूँ , प्रश्न इस लिए हैं , कृपया अन्यथा न लेंगी , सादर , सधी हुई , सुन्दर रचना हेतु बधाई
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