1222 1222 122
बहारों पर् चलो चरचा करेंगे
ख़िजाँ का ग़म ज़रा हलका करेंगे
कभी सोचा नहीं, हम क्या बतायें
न होंगे ख़्वाब तो हम क्या करेंगे
सजा दे , हक़ तेरा है हर खता की
उमीदें रख न हम तौबा करेंगे
अगर जुगनू सभी मिल जायें, इक दिन
यही सर चाँद का नीचा करेंगे
सँभल जा ! हम इरादों के हैं पक्के
कि, मर के भी तेरा पीछा करेंगे
जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये
सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे ...... इब्ने सुब्ह = सूरज
सभी ख़ुद आश्ना रोते मिलें, कल
अगर आईने काम अपना करेंगे
निहारे जा रहा हूँ आसमाँ को
करम फर्मा इशारा क्या करेंगे
हँसी ले जाओ सारी मुफ्त में तुम
हम अश्क़ों का न फिर सौदा करेंगे
सुखा तू , उस तरफ से जितना दम है
पसीना इस तरफ़ सींचा करेंगे
बहुत तारीकियाँ हैं , गर जलें हम
किसी आंगन को तो उजला करेंगे
ख़ुदा हो जा, अगर क़ुव्वत है तुझ में
अगर तू हो गया , सज़दा करेंगे
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गिरिराज भंडारी
Comment
आदरणीय राम अवध भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय कृष्णा भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये
सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे.... ----- अलिफ वस्ल सर के र और इ के बीच हुआ है , और इसके बाद - सरिब्ने हुआ है इसमे आधा ब का हुई रोल नही है । अतः ये सही है । वैसे भी आदरणी वीनस भाई जी की नज़र गज़ल पर पड़ ही चुकी है , अगर कोई गलती लगती तो वो लिख ही देते ।
मात्रा गिरा हो या अलिफ वस्ल हो मेरे ख्याल से अगर मात्रा गिर के कोई दूसरा शब्द बन रहा हो तो नही गिर सकती या नही गिरानी चाहिये , वैसे ही अलिफ वस्ल का भी होना चाहिये , वैसे ये मेरी जानकारी मे नही है , फिर भ्भी यही होना चाहिये ऐसा लगता है ।
आदरणीय वीनस भाई की एक सीख है -- गज़ल कहने के लिये सीधे सादे साफ अलफाज़ मे कहे , और शब्द विन्यास मे जादा उछ्ल कूद न हो , तो समझने मे आसानी होती है , शे र अच्छे लगते हैं । अगर सम्भव हो तो आप भी यही किया करें ।
आ० गिरिराज सर बहुत ही लाजवाब गजल हुयी है ..मत्ले ने ही मुग्ध कर दिया! कितनी सरलता से क्या खूब हुआ है लाजवाब!
कभी सोचा नहीं, हम क्या बतायें
न होंगे ख़्वाब तो हम क्या करेंगे...............यह शेर हासिले गजल लगा मुझे!! स्पष्ट दिखता है की बस हो गया कहा नही गया!नमन!
जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये
सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे................लाजवाब! शेर हुआ है..पर इस शेर के माद्यम से अलिफ़ वस्ल के सम्बन्ध में मेरे कुछ प्रश्न है! १) सर इब्ने = स+रिब्+ने १२२ में इ के साथ आधा ब् भी है क्या ऐसी स्थिति में भी अलिफ़ वस्ल किया जा सकता है??
२) दूसरा प्रश्न पहले प्रश्न का ही विस्तार है अलिफ़ वस्ल में ऐसी स्थिति होने पर कुछ माननीय जनों का कहना है कि--- शब्दार्थ न बदले तो किया जा सकता है मतलब के //जाग+उट्ठे// में उट्ठे क्रिया है कोई विशेष शब्द नही है तो किया जा सकता है पर नाम+इश्क नही किया जाना चाहिए क्युकी इश्क एक शब्दविशेष है! सादर मार्गदर्शन निवेदित है!
आ० मत्ले से मकते तक सभी शेर बेहतरीन हुये है...............//गजल कहना और गजल होना वाली बात आपकी और मिथिलेश सर की चर्चा में जो एक बारगी सुनी थी उसका अदा० आपकी गजल के रूप में देख रहा हूँ आदरणीय जिस तरह से आप गजल की साधना में लीन हो गये है ऐसा होना लाजिमी ही है! नमन है सर!
आदरणीय भुवन भाई , आपको गज़ल पसंद आई जान कर मन गदगद है , आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय वीनस भाई , आपने तो मन प्रसन्न कर दिया , एक साथ छै शेर आपक को पसंद आये तो मेरा गज़ल कहना सार्थक हो गया । आपका हृदय से आभारी हूँ ।
वाह वा एक से बढ़ कर एक शेर ...
ये अशआर ख़ास पसंद आये .............
बहारों पर् चलो चरचा करेंगे
ख़िजाँ का ग़म ज़रा हलका करेंगे
कभी सोचा नहीं, हम क्या बतायें
न होंगे ख़्वाब तो हम क्या करेंगे
सजा दे , हक़ तेरा है हर खता की
उमीदें रख न हम तौबा करेंगे
सभी ख़ुद आश्ना रोते मिलें, कल
अगर आईने काम अपना करेंगे
निहारे जा रहा हूँ आसमाँ को
करम फर्मा इशारा क्या करेंगे
ख़ुदा हो जा, अगर क़ुव्वत है तुझ में
अगर तू हो गया , सज़दा करेंगे
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना मेरा सम्बल है , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ
आदरणीया , राजेश जी , बात ऐसी नही है कि माफी तक जाये , मुझे आश्च्रर्य ये हुआ कि इसी गज़ल मे दो और शे र मे अलिफ वस्ल का उपयोग हुआ है जिसे आप और मिथिलेश भाई बखूबी समझ गये , पर उसी के बाद के शे र मे नही समझ आया । अगर अलिफ वस्ल की याद ही न आये तो कोई बात नहीं , ये गलती तो सबसे होती है , अलिफ वस्ल का ध्यान ही नही आया , खुद मुझसे भी । अतः फिर से कहता हूँ ऐसी कोई गलती नही कि बात मुआफी तक पहुचें । सादर
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