विश्लेषण
फिर आज समय है विश्लेषण का
क्या खोया क्या पाया हमने
क्या अपराधी नहीं बने हम
विस्मृत कर बापू के सपने
डटे रहे जो निर्भय रण में
सत्य अहिंसा का संबल ले
डिगे तनिक न सत्य मार्ग से
अविजित दुरूह आत्मबल ले
पर उनकी संतान आज
सब भूल रही है
विचलित औ ' पथ भ्रष्ट
अधर में झूल रही है
स्वर्णिम भारत के सब सपने
पिघल रहे हैं
धनिक आज निर्धन का हिस्सा
निगल रहे हैं
धर्मं जाति हमको अबतक
कितना बाँट चुके हैं
साम्प्रदायिकता के दीमक सारा
भारत चाट चुके हैं
किसी क्षुधित की पीड़ा से
हम होते नहीं तनिक विचलित
मंदिर - मस्जिद के झूठे भेद
अब हमको करते चिंतित
धर्मं जाति के नाम पर हम
रक्त बहा सकते हैं
निर्दोषों के खून से
बेख़ौफ़ नहा सकते हैं
काश ! क्षुद्र -तुच्छ बातों पर
अपने अपनों से लड़े नहीं
सदिया बीती संग -संग रहते
पर ह्रदय ह्रदय से जुड़े नहीं
अपना लक्ष्य भूल गए
ऐसे भटके पथ क्यूँ कर
ह्रदय के बंद पट खोलो
बहे हवा मन को छूकर
बीते बरसों कितना खोया
तन से , धन से , अंतर्मन से
टूटे मन आओ फिर जोड़े
करें सत्य संकल्प ह्रदय से
(तनूजा उप्रेती)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आभार मैम
धर्मं जाति हमको अबतक
कितना बाँट चुके हैं
साम्प्रदायिकता के दीमक सारा
भारत चाट चुके हैं
किसी क्षुधित की पीड़ा से
हम होते नहीं तनिक विचलित
मंदिर - मस्जिद के झूठे भेद
अब हमको करते चिंतित
बहुत सुन्दर भाव हैं कविता में तनूजा जी,हमेशा की तरह सशक्त रचना हुई है दिल से बधाई काश गाँधी जी ने ही उस वक्त दो भाइयों को अलग न होने दिया होता थप्पड़ मारकर चुप कर दिया होता तो आज शायद ये इतना अलगाव न होता दो धर्मों में इतनी नफरतें न होती खैर ये मेरी निजी सोच है जिसका इस रचना से कोई लेना देंना नहीं मैं आपकी भावनाओं की कद्र करती हूँ तथा दिल से इस कविता पर बधाई देती हूँ |
आदरणीया तनूजा जी बहुत सुंदर रचना हुई है इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
सर्वथा सत्य कहा आदरणीय मोहन सेठी जी
आदरणीया तनूजा जी इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई ....करना तो चाहते हैं मगर कुछ लोग होने नहीं देना चाहते ...स्वार्थ बस स्वार्थ
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