परीक्षाहाल से गणित का प्रश्नपत्र हल कर बाहर निकले रवि ने चहकते हुए जवाब दिया, “ निजी विद्यालय में पढ़ने का यही लाभ है कि छात्रहित में सब व्यवस्था हो जाती है.”
“अच्छा .” कहीं दिल में सोहन का ख्वाब टूट गया था.
“चल . अब , उत्तर मिला लेते हैं.”
“चल.”
प्रश्नोत्तर की कापी देखते ही रवि के होश के साथ-साथ उस के ख्वाब भी भाप बन कर उड़ चुके थे. वही सोहन की आँखों में मेहनत की चमक तैर रही थी .
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ओमप्रकाश जी रचना के मर्म को तो शीर्षक ने ही स्पष्ट कर दिया है. दरअसल दो बातें है -
//निजी विद्यालय में पढ़ने का यही लाभ है कि छात्रहित में सब व्यवस्था हो जाती है.//
//कापी देखते ही रवि के होश के साथ-साथ उस के ख्वाब भी भाप बन कर उड़ चुके थे.//
इन दो बातों में पहली बात गलत सिद्ध हो रही है कि छात्रहित में सब व्यवस्था हो जाती है. दरअसल नक़ल के तात्कालिक से व्यवस्था के दूरगामी दुष्परिणाम होते तो कथा निखर जाती. परीक्षा हॉल से निकलते ही नक़ल की व्यवस्था और दूसरे पल दुष्परिणाम को ले आना कृत्रिम लग रहा है. घटनाओं को घटित होने देना अलग बात है और बलात घटित कराना और परिणाम निकालना अलग बात. खैर ये मेरी व्यक्तिगत सोच है. मैं लघुकथा का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ और इसके शिल्प को भी समझ नहीं पाया हूँ लेकिन एक पाठक की हैसियत से प्रतिक्रिया दे रहा हूँ. गुनीजनों की प्रतिक्रिया से बात स्पष्ट होगी.
लघु कथा के पीछे आके भाव अच्छे है पर लघु कथा का कथ्य कमजोर लग रहा है जो छाप नहीं छोड़ रहा श्री ओमप्रकाश जी | सादर
नक़ल पर मेहनत की श्रेष्ठता बताती लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय..
आदरणीय ओमप्रकाश जी इस लघुकथा का मर्म समझ आ रहा है किन्तु कथानक और कथ्य स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. बिलकुल ये बात उभर रही है मगर कथानक उसे स्पष्ट नहीं कर पा रहा है
रवि ने नक़ल से और सोहन ने मेहनत से परीक्षा दी.
जब दोनों ने प्रश्नोत्तर मिलाये तो रवि के होश उड़ गए और सोहन खुश हो गया.
यदि यही कथ्य है तो इसमें कथा कहा है ये नहीं समझ पा रहा हूँ. और ये निजी विद्यालय वाली भी गुत्थी भी समझ नहीं आई.
सादर
सभी पाठको से अनुरोध है कि मेरी लघुकथा की बेझिझक समालोचना करें. इस से मुझे लघुकथा संवारने का मौका मिलेगा.
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