For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आस्था (लघुकथा)

सुबह-सुबह ऑफिस के लिए तैयार होती दिव्या ने छोटी सी काली बिंदी माथे पर सजाई, बालों का सुरुचिपूर्ण जूड़ा बनाया और एक नज़र बरामदे में बैठी कनखियों से उसे ही देख रहीं सासू माँ पर डाली.
“ज़रा सा सिंदूर भी लगा लिया कर भली-मानस,” सासू माँ ने मजाकिया लहजे में दिल की बात कही, “शुभ होता है.”
“पर माँ बारिश का मौसम है, चार बूंदें भी गिर गई तो ऑफिस में बंदरिया बन कर पहुँचूंगी.” अपना टिफिन पैक करते हुए दिव्या ने हँसकर कहा.
“और ये काली बिंदी मुझे नहीं भाती... बिंदी लाल होती है सुहाग का प्रतीक.” सासू माँ ने फिर कहा.
“ओहो मम्मा मैचिंग हैं! आप भी क्या पुराने लोगों जैसी बात कर रही हो, माई यंग लेडी.” कह कर सासू माँ के गाल पर चुम्बन जड़ कर, दिव्या शरारती बच्चे की तरह भागती हुई निकल गई.

पति निखिल ट्रेनिंग पर देश से बाहर था, सास-बहू प्यार से वक्त गुज़ार रहीं थीं. शाम को दिव्या घर वापस आई, निखिल के आगमन की खुशखबरी लेकर. सास बहू टीवी के सामने बैठी थी, कि अचानक उसके विमान के राह भटक कहीं अनजान स्थान पर उतरने की सूचना ने दोनों के प्राण ही निकाल लिए. मगर थोड़ी ही देर में निखिल से फोन पर बात होने से जान में जान आई.

सासू माँ उठ कर ईश्वर को धन्यवाद स्वरूप दीपक जलाने लगीं, तभी उनकी निगाह दिव्या पर पड़ी जो आईने के सामने खड़ी मांग में सिंदूर सजा रही थी. आज उसे माँ की आस्था का महत्व पता चल गया था, शायद...

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Seema Singh on August 21, 2016 at 11:52am
सर, इस बात को ऐसे देखिए न आपकी टिप्पणी का गूढ़ अर्थ समझने में मुझ अज्ञानी एक वर्ष का समय लग गया।जब अर्थ समझ आया तब आभार व्यक्त किया है सादर ।
Comment by Seema Singh on August 21, 2016 at 11:48am
शुक्रिया प्रिय राहिला।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2016 at 11:44am

एक वर्ष बाद के धन्यवाद ज्ञापन ने असीम प्रसन्नता दी है, आ० सीमाजी। तब हम इन क्लिष्ट गद्य विधाओं पर भी कितना उत्साहित हुआ करते थे ! 

हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Rahila on August 21, 2016 at 11:44am

बहुत प्यारी रचना। मुझे मेरा और मेरी सास का मधुर रिश्ता याद आ गया ।बहुत बधाई ।सादर 

Comment by Seema Singh on August 21, 2016 at 8:35am
मार्गदर्शन करती इस टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार आ० सौरभ सर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2015 at 12:43pm

एक ऐसे परिवार के वातावरण को साझा किया गया है जो भले ही प्रतिशत के आधार पर अत्यंत कम हो, लेकिन उसकी मौज़ूदग़ी है. सास-बहू का पारस्परिक सम्बन्ध तनिक अधिक उत्साह से वर्णित हुआ है. लेकिन यह भी सही. ऐसे वर्णन थोडी राहत भी देते हैं.  इतनी ’मीठी’ कथा से हम एक पाठक के तौर पर कहीं ’डायबेटिक’ न हो जायँ. सो संतुलन रखियेगा. सारा कुछ बहुत ’गुडी-गुडी’ हो न, तो या तो डर लगने लगता है, या, कृत्रिमता का अहसास होने लगता है.. हा हा हा..
कथ्य के हिसाब से यह लघुकथा तनि कसाव चाहती है.

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, आदरणीया सीमाजी.

आदरणीय मिथिलेशजी के सुझाव सटीक एवं एकेडेमिक हैं. हार्दिक धन्यवाद भाईजी

Comment by Seema Singh on July 23, 2015 at 9:12am
बहुत धन्यवाद राहुल डांगी जी...
Comment by Seema Singh on July 23, 2015 at 9:11am
आभार त्रिपाठी जी एवं सुनील जी..
Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 11:30pm

आज कल की लड़कियां इन सब बातों पर धयान नही देती ,,हमारी  संस्कृति ,हमारी पहचान है |बधाई इस लघुकथा के लिए आ..

Comment by shree suneel on July 22, 2015 at 9:38pm
आस्था के महत्व को रेखांकित करती हुई बहुत ही सुंदर लघु-कथा. अच्छी लगी ये प्रस्तुति आदरणीया. आपको हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Oct 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service