सुबह-सुबह ऑफिस के लिए तैयार होती दिव्या ने छोटी सी काली बिंदी माथे पर सजाई, बालों का सुरुचिपूर्ण जूड़ा बनाया और एक नज़र बरामदे में बैठी कनखियों से उसे ही देख रहीं सासू माँ पर डाली.
“ज़रा सा सिंदूर भी लगा लिया कर भली-मानस,” सासू माँ ने मजाकिया लहजे में दिल की बात कही, “शुभ होता है.”
“पर माँ बारिश का मौसम है, चार बूंदें भी गिर गई तो ऑफिस में बंदरिया बन कर पहुँचूंगी.” अपना टिफिन पैक करते हुए दिव्या ने हँसकर कहा.
“और ये काली बिंदी मुझे नहीं भाती... बिंदी लाल होती है सुहाग का प्रतीक.” सासू माँ ने फिर कहा.
“ओहो मम्मा मैचिंग हैं! आप भी क्या पुराने लोगों जैसी बात कर रही हो, माई यंग लेडी.” कह कर सासू माँ के गाल पर चुम्बन जड़ कर, दिव्या शरारती बच्चे की तरह भागती हुई निकल गई.
पति निखिल ट्रेनिंग पर देश से बाहर था, सास-बहू प्यार से वक्त गुज़ार रहीं थीं. शाम को दिव्या घर वापस आई, निखिल के आगमन की खुशखबरी लेकर. सास बहू टीवी के सामने बैठी थी, कि अचानक उसके विमान के राह भटक कहीं अनजान स्थान पर उतरने की सूचना ने दोनों के प्राण ही निकाल लिए. मगर थोड़ी ही देर में निखिल से फोन पर बात होने से जान में जान आई.
सासू माँ उठ कर ईश्वर को धन्यवाद स्वरूप दीपक जलाने लगीं, तभी उनकी निगाह दिव्या पर पड़ी जो आईने के सामने खड़ी मांग में सिंदूर सजा रही थी. आज उसे माँ की आस्था का महत्व पता चल गया था, शायद...
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
एक वर्ष बाद के धन्यवाद ज्ञापन ने असीम प्रसन्नता दी है, आ० सीमाजी। तब हम इन क्लिष्ट गद्य विधाओं पर भी कितना उत्साहित हुआ करते थे !
हार्दिक धन्यवाद
बहुत प्यारी रचना। मुझे मेरा और मेरी सास का मधुर रिश्ता याद आ गया ।बहुत बधाई ।सादर
एक ऐसे परिवार के वातावरण को साझा किया गया है जो भले ही प्रतिशत के आधार पर अत्यंत कम हो, लेकिन उसकी मौज़ूदग़ी है. सास-बहू का पारस्परिक सम्बन्ध तनिक अधिक उत्साह से वर्णित हुआ है. लेकिन यह भी सही. ऐसे वर्णन थोडी राहत भी देते हैं. इतनी ’मीठी’ कथा से हम एक पाठक के तौर पर कहीं ’डायबेटिक’ न हो जायँ. सो संतुलन रखियेगा. सारा कुछ बहुत ’गुडी-गुडी’ हो न, तो या तो डर लगने लगता है, या, कृत्रिमता का अहसास होने लगता है.. हा हा हा..
कथ्य के हिसाब से यह लघुकथा तनि कसाव चाहती है.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई, आदरणीया सीमाजी.
आदरणीय मिथिलेशजी के सुझाव सटीक एवं एकेडेमिक हैं. हार्दिक धन्यवाद भाईजी
आज कल की लड़कियां इन सब बातों पर धयान नही देती ,,हमारी संस्कृति ,हमारी पहचान है |बधाई इस लघुकथा के लिए आ..
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