“छह महीने होने आए, डॉक्टर साहब माई की सेहत में कोई खास अंतर तो दिख नही रहा!”
आश्रम के संचालक ने अपने आश्रम के नियमित डॉक्टर से चिंता बांटी, जो अभी अभी सब मरीज़ों का रुटीन चेकअप करके आश्रम स्थित छोटे से कमरे में आकर बैठें थे जो कि उनका आश्रम में क्लिनिक था।
“हाँ, विलास बाबू! है तो चिंता की बात, इतनी ऊँचाई से गिरी थी और उम्र भी है,आप खुद ही सोचिए।” डॉक्टर साहब में गोल-गोल शब्दों में स्पष्ट किया।
“हाँ आपने कहा तो था शहर ले जाने को, पर क्या करें हमारी विवशता है। वो तो आपका सहारा है…
Added by Seema Singh on May 21, 2017 at 9:00am — 6 Comments
"अरे! लड़कियों जल्दी से भीतर आओ बड़ी मालकिन बुला रही हैं।" हवेली की बुजुर्ग नौकरानी ने आंगन में गा-बजा रही लड़कियों को पुकारा तो सब उत्साहित हो झट से चल पड़ी।
मालकिन की तो ख़ुशी का कोई ठिकाना न था। आखिर इकलौते पोते की पसन्द को स्वीकारने के लिए उन्होंने अपने बहू-बेटे को मना जो लिया था। पर इसके लिए उन्होंने यह शर्त भी रखी थी कि विवाह उनके पारिवारिक रीति-रिवाज से होगा। भावी वधू के साथ-साथ घर की स्त्रियां भी चाव से गहने देखने लगी।
"अरे ! ये मांग टीका अब कौन पहनता है?" होने वाली बहू की छोटी…
Added by Seema Singh on January 14, 2017 at 11:00pm — 21 Comments
Added by Seema Singh on October 18, 2016 at 1:48pm — 4 Comments
“चलो भैया घर नहीं चलना है क्या?”
साथी के स्वर सुन,सोच में डूबा मदन, चौंक कर बोला, “हाँ हाँ चलो भाई निकलतें हैं”
सब अपनी-अपनी साईकिल लेकर बढ़ चले, तो साथ ही काम करने वाला राघव, अपनी साईकिल मदन के आगे लगाकर बोला,
“चलिए दद्दा हम भी चलते हैं”
“जिनसे नाता था वो तो कब का छोड़ गए... तू कौन से जन्म रिश्ता निभा रहा है, रे?” साईकिल पर बैठते हुए उसने कहा.
साईकिल बढ़ाते हुए राघव बोला, “दद्दा, उम्र में छोटा हूँ, आपसे कहने का हक तो नहीं है. मगर...”
“पता है तू क्या कहेगा... मगर…
Added by Seema Singh on August 22, 2016 at 9:00am — 26 Comments
“हर साल भाई को राखी डाक से भेज देतीं हूँ,. इस बार सोच रहीं हूँ उसकी कलाई पर बांधने चली जाऊँ.” विमला ने सकुचाते हुए अपने मन की बात पति कही.
पति की चुप्पी को अनुमोदन जान आगे बोल उठी:
“आप चिंता मत करो मैंने कुछ रूपये बचा कर रखें हैं, फल मिठाई और भाई के लिए एक कमीज आराम से आ जायेगी आप बस आने जाने का टिकट करा देना मेरा. सुबह जाकर रात तक वापस आ जाऊँगी.”
पति को अब भी चुप देख पूछ बैठी:
“क्या कहते हो, चली जाऊँ?”
पति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ खत उसकी ओर बढ़ा दिया, जो उसकी…
Added by Seema Singh on August 12, 2016 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Seema Singh on March 26, 2016 at 11:29am — 5 Comments
“तुम साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहती, विमला की माँईं, तुम्हे शादी करवानी भी है या नहीं? एक से एक रिश्ते बताये तुमको... तुम हो कि किसी के कान छोटे, किसी के होठ मोटे बता रिश्ते ठुकराती ही चली जा रही हो!” वामन काकी के सब्र का बाँध टूट गया था आज तो. “पूरे गाँव के रिश्ते करवाएं हैं मैंने. कोई कह तो दे किसी की भी बिटिया अपने घर में सुख से ना है, या किसी भी घर में बेमेल बहू आई है आज तक.”
“ना, ना, काकी, तुम तो बेकार में लाल-पीली हो रही हो. मेरा वो मतलब ना था,” ठकुराइन मक्खन सी नरमी आवाज़ में लाकर बोली.…
Added by Seema Singh on March 15, 2016 at 6:00pm — 8 Comments
Added by Seema Singh on March 14, 2016 at 9:49am — 10 Comments
Added by Seema Singh on February 28, 2016 at 8:06am — 8 Comments
Added by Seema Singh on February 18, 2016 at 8:39pm — 6 Comments
बिचार (छुआ-छूत विषयाधारित कथा)
मेज पर कहीं से परोसा आया रखा था..
“ये कहाँ से आया अम्मा?” भोजन सूघतें हुए मयंक ने पूछा.
“अरे वो पड़ोस से आया है सेठ जी की बरसी थी ना..”माँ ने बताया.
“मैं खा लूँ?”मयंक ने पूछा.
माँ के उत्तर देने से पहले दादी बोल उठी,
“राम राम, ‘उन लोगों’ के घर का खायेगा जिनके यहाँ आज भी जूते गांठे जाते हैं.”
“दादी उनके यहाँ लघु-उद्योग कारखाना है जूते नहीं गांठे जाते.”
मंयक ने खाना परोसते हुए कहा.
“तो…
Added by Seema Singh on January 19, 2016 at 6:00pm — 8 Comments
दुविधा
सर्द साँझ थी जब शकीला अपने पति के साथ दफ्तर से घर लौट रही थी... वापसी में घर जाने की कोई जल्दी ना थी आराम से गंगा किनारे वाली शांत रोड पकड़, जहाँ अपेक्षाकृत कम ट्रैफ़िक रहता है, बीस-बाईस की गति से अहमद बाइक चला रहा था और शकीला उसकी पीठ से सर टिकाये अपनी थकान से मुक्ति पाने का प्रयास का रही थी. अभी आनंदेश्वर मंदिर पार भी ना हुआ था कि किसी बच्चे के रोने की आवाज़ से शकीला ने चौंक कर अहमद से पूछा, “आपने कुछ सुना?”
“हाँ मंदिर की घंटियों की आवाज़... क्यों क्या हुआ? मंदिर के पास वही…
Added by Seema Singh on December 21, 2015 at 2:35pm — 2 Comments
“अरे संभल कर मालती अपना ख्याल रख भई..” झुझलाहट पर काबू करते हुए काम्या ने कहा.
“मुझे दिखा नहीं और पैर उलझ गया मगर तुम चिंता ना करो, मैंने तीन बच्चों को जन्म दिया है,” मालती ने अपने पेट पर हाथ लगाते हुए कहा, “और इस तेरे वाले का भी ख्याल रख लूंगी.”
“हाँ खास ध्यान रखना तू, ये हमारे लिए बहुत जरुरी है.” काम्या ने कहा.
“हाँ मैं जानती हूँ.. ये तेरा बच्चा ही है”, मालती भावुक हो उठी.
“कुछ चाहिए हो तो बताना, मेरा नम्बर तो है ही तेरे पास”,काम्या ने कुछ नोट मालती को पकड़ाते हुए…
ContinueAdded by Seema Singh on September 2, 2015 at 8:30pm — 8 Comments
Added by Seema Singh on August 27, 2015 at 12:23am — 12 Comments
Added by Seema Singh on August 13, 2015 at 2:38pm — 6 Comments
सुबह-सुबह ऑफिस के लिए तैयार होती दिव्या ने छोटी सी काली बिंदी माथे पर सजाई, बालों का सुरुचिपूर्ण जूड़ा बनाया और एक नज़र बरामदे में बैठी कनखियों से उसे ही देख रहीं सासू माँ पर डाली.
“ज़रा सा सिंदूर भी लगा लिया कर भली-मानस,” सासू माँ ने मजाकिया लहजे में दिल की बात कही, “शुभ होता है.”
“पर माँ बारिश का मौसम है, चार बूंदें भी गिर गई तो ऑफिस में बंदरिया बन कर पहुँचूंगी.” अपना टिफिन पैक करते हुए दिव्या ने हँसकर कहा.
“और ये काली बिंदी मुझे नहीं भाती... बिंदी लाल होती है सुहाग का प्रतीक.”…
Added by Seema Singh on July 20, 2015 at 10:00am — 18 Comments
“माँ ये औरत मुझे सूरत से ही सख्त नापसंद है! आप मना कर दो इसको हमारे ना आया करे.”
मंशा को पता नहीं क्या हो जाता था, जब भी उस महिला को देखती. उसका सिर पर हाथ फिराना, चेहरा-बाहें छूने का प्रयास तो और भी घृणा से भर देता था. कितनी बार माँ को कहा भी, “उसको बोल दो मुझसे दूर रहे.” मगर उसकी हर छोटी बड़ी जिद पूरी करने वाली माँ इस बारे में कुछ ना सुनती.
मगर आज तो हद ही हो गई. उसने मंशा को छूना चाहा और मंशा ने ज़ोर का धक्का मार दिया. वो बेचारी फर्श पर गिर गई और मेज से टकरा कर सिर में चोट भी…
ContinueAdded by Seema Singh on July 20, 2015 at 8:30am — 8 Comments
“माँ तू खुद ही तो कहती है वो दरोगा अच्छा आदमी नहीं हैं और हम दोनो बहनों को उस से दूर ही रखती है.. फिर तू खुद वहाँ क्यों जाती है.., बचपन से देखती चली आ रहीं हूँ बापू के गुजरने के बाद से तू नियम से उसका खाना लेकर जाती है और देर रात वापस लौटती है. लोग कैसी कैसी बातें बनाते हैं.” बरसों से मन में घुमड़ते प्रश्न आज आखिर मदुरा ने माँ के सामने रख ही दिए..
“वो हमारा अन्नदाता है तो बदले में कुछ तो उसको भी देना ही होता है.” माँ ने बड़े शांत-भाव से उत्तर दिया और खाने का डिब्बा उठा कर गंतव्य की ओर…
ContinueAdded by Seema Singh on July 2, 2015 at 10:00am — 11 Comments
Added by Seema Singh on June 17, 2015 at 12:59pm — 4 Comments
Added by Seema Singh on May 12, 2015 at 4:04pm — 5 Comments
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