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बढ़िया कथा ,माँ की स्वभाविक चिंता ,बच्चों की बेफिक्री का बढि़या चित्रण ।बधाई सीमा जी ।
बुजुर्ग बस कंडक्टर का साथ अनावश्यक एवं अतिशयोक्ति ।सादर ।
बेहतरीन प्रस्तुति, आद० सुशील शर्मा जी से मैं भी सहमत हूँ
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बहुत सुंदर लघुकथा!
आदरणीया सीमा जी माँ की चिंता को आपने बड़े स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया है। हार्दिक बधाई। आ.सीमा जी क्षमा सहित बच्ची आफिस में काम करती है तो मेच्योर है और इतनी सक्षम है कि वो स्वयं बिना किसी की मदद के घर आ सकती है दूसरा शाम का समय अगर कोई बच्ची हो तो सही लगता है लेकिन कोई बुजुर्ग किसी यंग को घर छोड़ने आये तो बड़ा अजीब सा लगता है। मेरे विचार से पांच लाईन हालात उतने भी बुरे नहीं लेकिन हालात कब बुरे हो जाएँ ये नहीं खा जा सकता अतः सावधानी और सजगता की सदैव बरतनी चाहिए। जरा सी लापरवाही अनर्थ कर सकती है। खैर ये मेरा विचार है कृपया इसे अन्यथा न लेवें। यदि बुरा लगे तो क्षमा करें आदरणीया।
आ० सीमा जी , माँ तो आखिर माँ होती है हालत अच्छे हों या बुरे उसकी चिंता तो बच्चो के प्रति निरंतर होती ही है . आज जैसा दौर चल रहा हो माँ का अत्यधिक चिंतित होना लाजमी है पर इससे मुक्ति भी वही दिल सकती है l
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