For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोनचिरैया (लघुकथा)

“तुम साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहती, विमला की माँईं, तुम्हे शादी करवानी भी है या नहीं? एक से एक रिश्ते बताये तुमको... तुम हो कि किसी के कान छोटे, किसी के होठ मोटे बता रिश्ते ठुकराती ही चली जा रही हो!” वामन काकी के सब्र का बाँध टूट गया था आज तो. “पूरे गाँव के रिश्ते करवाएं हैं मैंने. कोई कह तो दे किसी की भी बिटिया अपने घर में सुख से ना है, या किसी भी घर में बेमेल बहू आई है आज तक.”
“ना, ना, काकी, तुम तो बेकार में लाल-पीली हो रही हो. मेरा वो मतलब ना था,” ठकुराइन मक्खन सी नरमी आवाज़ में लाकर बोली. “अब खुदहीं देखो, मेरी सगी नन्द की बिटिया है विमला. मैंने औलाद की तरह पाला-पोसा है. अब पढ़ा लिखा कर बड़ी अफसर भी बना दी है... उसके मेल का रिश्ता चाहूँ हूँ मैं, बस्स. चाहे थोड़ी देर से ही मिले, पर जोड़ का हो, नहीं तो दुनिया वाले तो ये ही कहेंगे ना कि अनाथ बच्ची का मामा-मामी ने कुछ ना सोचा और झोंक दी.”
“फिर कैसा रिश्ता चाहिए ये भी तो कहो?”
“मैं घर में बात करके बताती हूँ, हमें कैसा रिश्ता चाहिए.”
“सुनो! इधर आओ! देर से उनकी बातें सुन रहे विमला के मामा ने अपनी पत्नी को भीतर से पुकारा.
“हांजी? कहो क्या कहते हो?”
“काकी इतना ज़ोर दे रहीं हैं तो विमला के कान में बात डाल दो ना... एक बार मिल कर बात करने में हर्ज़ ही क्या है?”
“लगता है बीमारी ने तुम्हारे शरीर के साथ-साथ दिमाग भी खराब कर दिया है! अपनी सोनचिरैया ब्याह कर पराई कर दूँ? फिर हो ली लड़कों की पढ़ाई भी और तुम्हारा इलाज भी... और ये घर कैसे चलेगा, ये सोचा है?”
पति को डपटकर ठकुराइन बाहर निकली तो वामन काकी जा चुकी थी. सोनचिरैया को ब्याह सके ऐसा रिश्ता शायद उनके पिटारे में ना था...
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on March 18, 2016 at 6:47pm

आदरणीया सीमा जी, 

प्रातिफ़ल की इच्छा आज के समय का एक चलन सा बनता गया है. सुन्दर कथा. 

सादर.

Comment by Seema Singh on March 17, 2016 at 6:23pm
आ०राजेश दीदी,आ०समर कबीर जी,आ० तेजवीर सिंह जी,आ०सुशील जी आ०रामबली जी एवं प्रिय राहिला जी आप सब का ह्रदय से आभार ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 2:08pm
बहुत बहुत सुंदर लघुकथा आ. सीमा जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2016 at 9:45pm

वाह बहुत सुन्दर सार्थक लघु कथा हार्दिक बधाई आ० सीमा जी 

Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:10pm
मोहतरमा सीमा सिंह जी आदाब,इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Sushil Sarna on March 15, 2016 at 8:01pm

वाह आदरणीया सीमा जी मानवीय भावनाओं को सजीव करती इस सुंदर लघु कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Rahila on March 15, 2016 at 7:53pm
बहुत खूब...वाह. .क्या बेहतरीन रचना प्रस्तुत की आदरणीया सीमा दी! बहुत बधाई ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service