“हर साल भाई को राखी डाक से भेज देतीं हूँ,. इस बार सोच रहीं हूँ उसकी कलाई पर बांधने चली जाऊँ.” विमला ने सकुचाते हुए अपने मन की बात पति कही.
पति की चुप्पी को अनुमोदन जान आगे बोल उठी:
“आप चिंता मत करो मैंने कुछ रूपये बचा कर रखें हैं, फल मिठाई और भाई के लिए एक कमीज आराम से आ जायेगी आप बस आने जाने का टिकट करा देना मेरा. सुबह जाकर रात तक वापस आ जाऊँगी.”
पति को अब भी चुप देख पूछ बैठी:
“क्या कहते हो, चली जाऊँ?”
पति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ खत उसकी ओर बढ़ा दिया, जो उसकी नवब्याहता बहन ने अपनी ससुराल से भेजा था.पहली राखी ससुराल में मना रही बहन ने अपने भाई को बुलाया था.
विमला ने उठ कर रोली चावल की पुडिया के साथ राखी का धागा लपेट लिफाफे में रख लिया था.इस बार राखी फिर डाक से भेजने के लिए...
मौलिक एवं अप्रकाशित
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बहुत ही सार्थक रचना है सीमा जी । आर्थिक अभावों से जूझते मध्यमवर्गीय परिवाराें की यथार्थपरक स्िथती को सहज, सरल-स्वभाविक शैली में जिस कसावट से प्रस्तुत किया है वह चकित कर गया। हालांकि कथ्य नया नहीं है परन्तु प्रस्तुतिकरण के नयेपन से जो प्रभाव रोपित किया है वह आश्वस्त करता है। शुभकामनाएं स्वीकारें ।
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