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"अमां जफर बेटा, अपने अब्बू से न दुआ न सलाम! ये अल सुबह कहाँ भागे जा रहे हो?" खालिदा बेगम ने घर से बाहर जाते बेटे को बरामदे से ही आवाज लगायी।
"अरे अम्मीजान, मैं पहले ही 'जिम' के लिये लेट हो गया हूँ और आप......., खैर! आदाब अब्बा हुजूर।" बरामदे में ही बैठे अनवर मियां को दूर से ही हाथ हिलाकर जफर ने आदाब किया और देखते ही देखते ही नजरो से गायब हो गया।
उसकी हरकत पर खालिदा बेगम को तो हॅसी आ गयी अलबत्ता अनवर मियां पान की ग्लोरी मुँह में रखते रखते भुनभुना गये:

"लाहोल विला कुव्वत! ये आजकल के बच्चे। अरे पड़ोस के कामिल मियां के साहबजादे को देखो, कितना जहीन है, जब भी आता है घर भर में सबको तहजीब से सलाम करके जाता है। और एक हमारा........।"
"बस रहने दीजिये मियां।" अनायास ही खालिदा बेगम संजींदा हो गयी और बात को बीच में ही काट दिया। "ना चाहिये हमें अपने जफर में उसके जैसी तहजीब। कभी बहू बेटियो से तहजीबी सलाम करते बक्त उसकी आँखो में चमकती बेशर्मी पर भी गौर फरमाया है आपने।"
अचानक ही अनवर मियां को मुँह में रखी पान की ग्लोरी कसैली लगने लगी थी।

.
'विरेन्दर वीर मेहता'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:56pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी
आपके कथा पर हौसला देते शब्दो के लिये दिल से शुक्रीया।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:52pm
आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी आपके कथा पर अमूल्य कमेंट के लिये।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:52pm
आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी आपके कथा पर अमूल्य कमेंट के लिये।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:50pm
आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी आपके कथा पर अमूल्य कमेंट के लिये।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:50pm
आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी आपके कथा पर अमूल्य कमेंट के लिये।
Comment by Omprakash Kshatriya on July 21, 2015 at 11:55am
वास्तव में आप ने तहजीब के बहाने तहजीब सीखा दी ।
आ वीरेंद्र मेहता जी
बधाई आप को
Comment by Ravi Shukla on July 21, 2015 at 10:31am

सुन्‍दर कथा

तहजीब आंखो में भी हानेी चाहिये

अच्‍छे भाव

बधाई ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 9:56am
बहुत खूब
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 21, 2015 at 6:55am

बहुत खूब , सादर बधाई 

Comment by विनय कुमार on July 21, 2015 at 12:28am

वाह , वाह , बहुत बेहतरीन लघुकथा । तहज़ीब सिर्फ दिखावे की नहीं होती , बधाई इस रचना के लिए आदरणीय वीर मेहता जी..

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