रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं
जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं
लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं.
छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते हैं.
कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं
बनाते मूर्ख जनता को उगे मशरूम से बाबा सदा अपनी दुआओं के असर की बात करते हैं
बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं
कहाँ किसने वफ़ा की थी कहाँ किसने जफ़ा की थी चलो छोडो नये अपने सफ़र की बात करते हैं (मौलिक एवं अप्रकाशित ) |
Comment
//कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी
हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं//
आदरणीय शिज्जु भाई मिसरा-ए-उला में जो कहा गया है उसके सापेक्ष 'सहर' का प्रयोग सही है. यहाँ प्रतीकात्मक अर्थ न लेकर सीधा अर्थ लिए जाए कि रक्षा वो क्या करेंगे जो सुबह के लिए टाल जाते है. एक जुमला प्रयोग होता है ''सुबह देखते है" मुझे इस सन्दर्भ में ग़ज़ल का ये सबसे बेहतरीन शेर लगा. सादर
आदरणीया राजेश दीदी बहुत सुंदर ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई लेकिन मैं इस शे'र के कहन से मुतमइन नहीं हूँ
//कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी
हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं//
सहर की बात करने वाले हिफ़ाज़त क्यों नहीं कर सकते, चूँकि सहर का प्रयोग अक्सर सकारात्मक अर्थों में किया जाता है इसलिये यहाँ सानी थोड़ा उलझा हुआ लग रहा है।
//जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं// ये शेर और बेहतर हो सकता है
बाकी ग़ज़ल तो कमाल की है बहुत बहुत बधाई आपको
// लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं //, वाह , वाह , बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है | दिल से बधाई क़ुबूल करें आदरणीया राजेश कुमारी जी..
आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं
जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.............. बहुत बढ़िया मतला
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं.............. संकेत में बहुत बढ़िया कहन.... बाकि क्या कहूं
लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं..................... समर का अर्थ युद्ध है.... ग़ज़ल विधा होने के कारण फल के अर्थ भ्रम हुआ लेकिन पुनः शेर पढने पर बात स्पष्ट है.
छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते हैं...... बढ़िया
कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं................ बहुत ही बढ़िया... लाजवाब
बनाते मूर्ख जनता को उगे मशरूम से बाबा सदा अपनी दुआओं के असर की बात करते हैं........ बढ़िया
बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं............शानदार शेर
कहाँ किसने वफ़ा की थी कहाँ किसने जफ़ा की थी चलो छोडो नये अपने सफ़र की बात करते हैं................ बहुत सुन्दर |
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