बर्न वार्ड के बाहर भैंसे पर सवार यमराज खड़े थे
" प्रभु क्या सोच रहे हैं ? जल्दी प्राण हरिये और चलिए I आप तो मेरे ऊपर सवार घंटे भर से उस स्त्री को देखे जा रहे हैं,मेरी पीठ की दशा का भी कुछ ध्यान है ?"
"इस पुरुष ने अपनी पत्नी को जलाने का प्रयास किया और स्वयं जल गया I और ये स्त्री ,अपने सारे गहने बेच कर इसका इलाज करवा रही है, देखो कैसे बदहवास बाहर खड़ी रोये जा रही है Iमैं सोच रहा हूँ पुत्र ..............."
"कि इसके प्राण छोड़ दूं .,यही ना प्रभु ?और ये पुरुष ठीक होकर फिर से पत्नी को प्रताड़ित करे "
"ये भी तो हो सकता है कि सुधर जाये Iक्यों न इसको दे ही दिया जाय?"
"क्या प्रभु ? बेनिफिट ऑफ़ डाउट ?"
"नहीं पुत्र, बेनिफिट ऑफ़ होप "
.
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आ. प्रतिभा जी, आधुनिकता की चाशनी में लिपटा आपका तगड़ा कटाक्ष प्रशंसनीय है. कथा एक बार पुनः स्थापित करती है उस विचार को कि महिलाएँ दया की प्रतिमूर्ति होती हैं.
आ० विजय शंकर जी , कथा की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार
आपने कथा में निहित सन्देश को पढ़ा और उसका अनुमोदन किया , मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ आ० राजेश कुमारी जी
पहले भी कितनी पौराणिक दन्त कथाएं लिखी गई हैं जिनका सोचें तो वास्तविकता से दूर दूर तक का नाता नहीं होता था सत्यवान सावित्री की कथा तो बच्चा बच्चा भी जानता है उस वक़्त के लेखकों के मन में भी ऐसे ही भाव उपजते होंगे कथा तो कथा है सही कहा आपने ..स्त्री सपने में भी अपने पति का अनर्थ नहीं चाहती उसकी गलतियों को भी माफ़ कर देती है ...एक तो ये सन्देश देती है ये लघु कथा तथा दूसरा ये कि किसी अपराधी को सुधरने का एक अवसर अवश्य देना चाहिए अर्थात सकारात्मंक भाव रखने चाहिए कि हो सकता है सुधर जाए ..अच्छी लघु कथा लिखी है प्रतिभा जी ,बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद ,आ० Nita kasar जी
आपने कथा पर टिपण्णी की और उसके मर्म को समझा I आपका हार्दिक आभार आ० मिथिलेश जी
बिलकुल सही कहा आपने कि यमराज भावुक होने लगे तो चल ली सृष्टि आ० विनोद जी पर कथा तो कथा ही है I प्रयास की सराहना के लिए आपका आभार I
आदरणीया प्रतिभा जी, वैसे यह कथा तथ्य पर आधारित नहीं है ऐसे यमराज जी भावुक होने लगे तो चल ली सृष्टि.......। प्रयास आपने बहुत बढिया किया है। इसको और बेहतर किया जा सकता है।
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