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आशा का लाभ (लघुकथा)

बर्न वार्ड के बाहर भैंसे  पर सवार यमराज खड़े थे 

" प्रभु क्या सोच रहे हैं ? जल्दी प्राण हरिये और चलिए I आप तो मेरे ऊपर सवार घंटे भर से उस स्त्री को देखे जा रहे हैं,मेरी पीठ की दशा का भी कुछ ध्यान है ?"

"इस पुरुष ने अपनी पत्नी को जलाने का प्रयास किया और स्वयं जल गया I और ये स्त्री ,अपने सारे गहने बेच कर इसका इलाज करवा रही है, देखो कैसे बदहवास बाहर खड़ी रोये जा रही है Iमैं सोच रहा हूँ पुत्र ..............."

"कि इसके प्राण छोड़ दूं .,यही ना प्रभु ?और ये पुरुष ठीक होकर फिर से पत्नी को प्रताड़ित करे "

"ये भी तो हो सकता है कि सुधर जाये Iक्यों न इसको दे ही दिया जाय?"   

"क्या प्रभु ? बेनिफिट ऑफ़ डाउट ?"

"नहीं पुत्र, बेनिफिट ऑफ़ होप "

.

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by Prashant Priyadarshi on July 28, 2015 at 10:29pm

आ. प्रतिभा जी, आधुनिकता की चाशनी में लिपटा आपका तगड़ा कटाक्ष प्रशंसनीय है. कथा एक बार पुनः स्थापित करती है उस विचार को कि महिलाएँ दया की प्रतिमूर्ति होती हैं.

Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 10:24pm

आ० विजय शंकर जी , कथा की सराहना के लिए आपका हार्दिक  आभार 

Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 10:18pm

आपने कथा में निहित सन्देश को पढ़ा  और उसका अनुमोदन किया , मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ आ० राजेश कुमारी जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2015 at 10:04pm
आपकी यह कथा यह पुष्ट करती है कि सावित्रियां होती हैं। बधाई , इस विचार को जीवित रखने के लिए , आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 28, 2015 at 9:57pm

पहले भी कितनी पौराणिक दन्त कथाएं लिखी गई हैं जिनका सोचें तो वास्तविकता से दूर दूर तक का नाता नहीं होता था सत्यवान सावित्री की कथा तो बच्चा बच्चा भी जानता है उस वक़्त के लेखकों के मन में भी ऐसे ही भाव उपजते होंगे कथा तो कथा है सही कहा आपने ..स्त्री सपने में भी अपने पति का अनर्थ नहीं चाहती उसकी गलतियों को भी माफ़ कर देती है ...एक तो ये सन्देश देती है ये लघु कथा तथा दूसरा ये कि  किसी अपराधी को सुधरने का एक अवसर अवश्य देना चाहिए अर्थात सकारात्मंक भाव रखने चाहिए कि हो सकता है सुधर जाए ..अच्छी लघु कथा लिखी है प्रतिभा जी ,बहुत बहुत बधाई 

Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 8:29pm

धन्यवाद ,आ० Nita kasar जी  

Comment by Nita Kasar on July 28, 2015 at 8:07pm
यमराज औरभावुकता तालमेल संभव नहीं लगता,फिर भी उत्तम लघुकथा के लिये बधाई आपको आद०प्रतिभा पांडे जी ।
Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 5:37pm

आपने कथा पर टिपण्णी की और उसके मर्म को समझा I आपका हार्दिक आभार आ० मिथिलेश जी 

Comment by pratibha pande on July 28, 2015 at 5:33pm

बिलकुल सही कहा  आपने कि यमराज भावुक होने लगे तो चल ली सृष्टि आ० विनोद जी पर कथा तो कथा ही है I   प्रयास की सराहना के लिए आपका आभार I

Comment by विनोद खनगवाल on July 28, 2015 at 4:33pm

आदरणीया प्रतिभा जी, वैसे यह कथा तथ्य पर आधारित नहीं है ऐसे यमराज जी भावुक होने लगे तो चल ली सृष्टि.......। प्रयास आपने बहुत बढिया किया है। इसको और बेहतर किया जा सकता है।

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