“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”
“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”
“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”
“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”
“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”
“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में ही......”
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी, लघुकथा की बारीकियां तो नहीं समझता ,पर मुझे लघुकथा रोचक और मनभावन लगी!बधाई!
सामयिक विषय पर ना जाने कुछ अधूरापन सा लग रहा
आदरणीय सुशील सरना सर, आपको लघुकथा पसंद आई, लिखना सार्थक हो गया. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
वाह बहुत ही सार्थक लघु कथा प्रस्तुत की है आदरणीय मिथिलेश जी और ये पंक्ति 'अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में ही..........”कुछ सोचने को मज़बूर करती है। हार्दिक बधाई।
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