धरती का नूतन नखशिख सिंगार लिखो
सावन लाया है मोती के हार लिखो
दादुर मोर मयूरी का आभार लिखो
नदियों नालों में जल का विस्तार लिखो
पत्ता पत्ता डाली डाली झूम रही
बूँदे बूँदे चूम रही हैं प्यार लिखो
प्यास बुझाती कुदरत कितने प्यासों की
तिनके तिनके पर उसका उपकार लिखो
खेतों खेतों धान उगाते हैं हाली
भेज रहे बादल जल का उपहार लिखो
सागर नदिया लहरों की रफ़्तार गजब
नैया बहती जाये बिन पतवार लिखो
आमों की डाली पर तीजो के झूले
आया सावन में फिर ये त्यौहार लिखो
कैसे झेले मार कड़कती चपला की
बूढा बरगद है कितना बीमार लिखो
बाहर बदरा नैनों में बरसात हुई
साजन की यादों से हैं बेजार लिखो
राहें तकती हैं कबसे बिरहन अँखियाँ
साजन का होने को है दीदार लिखो
पल पल रंग बदलते फिरते बौराये
पागल मेघों का नभ पर अधिकार लिखो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
हर्ष महाजन जी,आपको ये प्रस्तुति अच्छी लगी दिल से आभार प्रेषित करती हूँ |
आदरणीय rajesh kumari जी वाह हर शेर भाव पूर्ण
"कैसे झेले मार कड़कती चपला की
बूढा बरगद है कितना बीमार लिखो".....ये दिल को छू गया ....दाद ......वसूल पाइयेगा !!
साभार !
आ० सौरभ जी ,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना पाकर मन खुश हो गया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार आपका .
राहुल दांगी जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया प्रभूत आभार .
मिथिलेश भैया पोस्ट पर देर से आने का खेद है दो दिन से नेट ने परेशान किया हुआ था आज जाकर ठीक हुआ |आपको सावन के लिए लिखी ये ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से आभारी हूँ |
कैसे झेले मार कड़कती चपला की
बूढा बरगद है कितना बीमार लिखो
पल पल रंग बदलते फिरते बौराये
पागल मेघों का नभ पर अधिकार लिखो
इन दो अश’आर के बरअक्स आपकी इस कोमलकान्त भावांजलि के हार्दिक शुभकामनाएँ \अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेशजी.
मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर सबसे पहले पाठक टिप्पणीकार के रूप में आपका हार्दिक स्वागत है आपको प्रस्तुति पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ |
आदरणीया राजेश दीदी शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
इन तीन अशआर पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं -
कैसे झेले मार कड़कती चपला की
बूढा बरगद है कितना बीमार लिखो
राहें तकती हैं कबसे बिरहन अँखियाँ
साजन का होने को है दीदार लिखो
पल पल रंग बदलते फिरते बौराये
पागल मेघों का नभ पर अधिकार लिखो
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