For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए

2122 2122 2122 212


किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,
दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |

कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,
महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |

बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,
किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |

प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,
नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |

लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,
और फिर हाले-वतन भी, बद से बदतर कर गए |






"मौलिक व अप्रकाशित" © हर्ष महाजन

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:00pm

आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी आदाब !! मुझे भी आपको यहाँ देख कर बहुत ख़ुशी हुई ....हम कलम अपनी जगह खुद ढूंढ लेते हैं ...यहाँ मेम्बर तो बहुत पहले से ही था कृष्णा साहब...password कहीं गायब हो गया था और न ही कुछ जियादा यहाँ आ पाया था ....यहाँ की बज़्म का अलग ही लुत्फ़ है अभी मैं जियादा कुछ देख नहीं पाया हूँ....इन्तहाई खूबसूरत और आला दर्जे के जौक कहने वाले और कितने नर्म मिजाज़ .....!!
शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई...आभार !!

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 10:48pm

आदरणीय Sushil Sarna जी मुहब्बत है आपकी | आपने मेरे मुक्तसर से खयालात के पसंद किया | हिम्मत बढाने के इए तह-ए-दिल से मशकूर-ओ-ममनून हूँ | साभार..

हर्ष महाजन

Comment by मनोज अहसास on August 1, 2015 at 10:47pm
आभार सर
सादर
Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 10:44pm

आदरणीय saalim sheikh जी आपकी आमद का बुत बहुत शुक्रिया !!

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 10:44pm

आदरणीय vinaya kumar singh जी बेहद शुक्रिया !! जी सही कहा आपने ....

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 10:42pm

आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी आपकी हौंसिला अफजाई के लिए मैं दिल से धन्यवाद करता हूँ | सर गज़लिया आशार को आप बार बार पढ़ें तो ज़रूर अपना असर छोड़ेंगे....इशारा भर यही है...कि ..आजकल हमारी society में हक परस्ती इतनी बढ़ गई  जिसकी वज़ह प्यार करने वाले नहीं पनप रहे ...जिस दिन सब खुश होंगे  उस दिन समझ लेना की बुज़र्गों की हक परस्ती ख़तम हुई..." बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,
किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |"........soceity की बदिशों ने बेटियों को घर में इस हद तक बंद कर दिया ...खुला ज़माना बरसों पहले छूट गया जब बिना डर के बे-खौफ घूमा करते थे....

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 10:32pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी  आपकी मुहब्बतों के लिए  तह-ए-दिल से मशकूर हूँ ..स,र ख्यालों को बुलंदी देना आप खूब जानते हैं ...आपकी पसंदगी, मेरे ख्यालों को रौशन कर गई जिसके लिए मैं बे-इन्तहा आभारी हूँ ....जो इज्ज़त आपने मेरी ग़ज़ल को बक्शी है उसके लिए मैं निशब्द हूँ......आखिरी बंद में जो आपने कशिश रवानगी और रौशनी की तासीर डाली है उसका कोई भी सानी नहीं हो सकता....और दाद का अंदाज़ तो दिल को छू ही गया सर !!

उम्मीद ही नहीं यकीन है आपकी इनायत ऐसे ही बनी रहेगी ...साभार !!

शुक्रिया

हर्ष महाजन

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 1, 2015 at 9:08pm

सुन्दर गज़ल हुयी है आ० हर्ष महाजन सरजी! आपको obo मंच पर पाकर मन हर्षित हुआ!

Comment by Sushil Sarna on August 1, 2015 at 7:47pm

प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,
नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |
वाह बहुत सुंदर बात कही कही है आपने .... हर शे'र
अलग महक से महक रहा है… हार्दिक बधाई इस खूबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति पर आदरणीय।

Comment by saalim sheikh on August 1, 2015 at 6:01pm

भाई बढ़िया ग़ज़ल , बधाई 
आपकी पिछली ग़ज़ल पर मैंने कहा था कि कुछ अशआर अस्पष्ट रह गए हैं , जिस पर आपने इसे समझ का फेर बताया था ,

अब यहाँ अगर 'मनोज कुमार एहसास' भाई को अशआर समझने में दिक्कत हो रही है तो आदरणीय शायद कहीं तो कोई बात  है .

मुझे लगता है कि ग़ज़ल के अशआर में रवानगी और सादगी का होना बेहद अहम है . बाकि मैं भी अभी सीखने की प्रक्रिया में ही हूँ , अगर कोई बात ग़लत लगे तो बराए मेहरबानी माफ़ करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
yesterday
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service