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आरणीय दिनेश जी मतले पर थोड़ा मार्गदर्शन चाहेंगे
हमने दूद को धुएं के सन्दर्भ मे ही पढ़ा है इस लिहाज से मौज ए दूद तो धुए की लहर हुई और आप इसे प्यार की लहर के रूप मे कह रहे है । गालिब ने भी कहा है ...... या चरागे दूद । जो भी तेरी बज़्म से निकला परीशां निकला ।। आपके द्वारा क्लिष्ट अल्फाज के माअनी देने के बाद हमारे दिल में ये ख्याल आया है । क्षमा चाहते है, आशा है अन्यथा न लेकर हमरी शंका का समाधान करेंगे ।
आदरणीय दिनेश भाई जी, शानदार ग़ज़ल हुई है. इस ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
ये ग़ज़ल जब सामने आई तो हम लुगत की जुगत में लग गए तब तक ग़ज़ल गायब हो गई. समझ आ गया कि आपने ग़ज़ल एडिट कर दी है. फिर नजर नहीं आई. अभी आदरणीय रवि जी के कमेन्ट के कारण लेटेस्ट एक्टिविटी में नज़र आ गई. नहीं तो इस शानदार ग़ज़ल से आनंद ही नहीं ले पाते. सादर
आरणीय दिनेश जी
बर बस ही हर शेर पर वाह वाह निकलती रही
शेर दर शेर दाद कुबूल करें
काफिया की बहार देखते ही बनती है
किसी एक शेर का जिक्र करना नाइंसाफी होगी
फिर भी
जुनून-ए-इश्क़ भी ढ़लता है रोज़-ए-वस्ल के बाद
ये कहकशाँ भी हक़ीक़त में बे-हुदूद नहीं
ये शेर
और ग़जर का मकता दोनो हमे बहुत पंसद आये
आभार ।
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