लड़कियाँ होती अगर
उड़हूल के फूलों की तरह
और तोड़ ली जाती
बिन खिले
अधखिले
खिल जाती फिर भी
समय के साथ
पर लड़कियाँ तो होती हैं
गुलाब की तरह
नीरज कुमार नीर /
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस प्रोत्साहन हेतू आपका बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री सुनील जी
आभार आदरणीय जवाहर जी
गजब!
आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब .....
बहुत सही बात कही , आदरणीय , बहुत बढिया । कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय सौरभ जी यह मेरे लिए सम्मान की बात है ..... आपका हार्दिक आभार मान्यवर इस उत्साहवर्द्धक टिप्पणी हेतू .....
आर्डिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी ...
बहुत खूब भाई नीरजनीरजी. अपने अंदाज़ की बहुत ही सहज किन्तु अत्यंत सुगढ़ रचना हुई है.आपकी इस कविता को मैं रख रहा हूँ.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
बढ़िया प्रस्तुति बधाई
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