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ग़ज़ल : लब-ओ-अरिज़ की, वफ़ा और जफ़ा की बातें

लब-ओ-अरिज़ की, वफ़ा और जफ़ा की बातें
नाज़-ए-महबूब की, क़ामत की, अदा की बातें
.
जलव-ए-वस्ल की, फुरक़त की,सज़ा की बातें
दिल-ए-बेहोश, फिर एक होशरुबा की बातें
.
हैं कहाँ इश्क़-ओ-वफ़ा , दर्द-ओ-दवा की बातें 
हैं फ़क़त सूद-ओ-ज़ियाँ , बुग्ज़-ओ-अना की बातें
.
हाल-ए-दिल हम ने सुनाया तो ज़रा बात चली
हाल-ए-दिल तुम भी सुनाओ , तो हों बाक़ी बातें
.
बुरा कहता है ज़माना , तो कहे ना , सालिम
उम्र भर हमने कहाँ, किसकी ,सुना की बातें ?
   -सालिम शेख 
''मौलिक एवं अप्रकाशित ''

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Comment by मनोज अहसास on August 4, 2015 at 9:30pm
बहर आदि की बातें तो ज्यादा हम जानते नहीं कहे क्या
बस इतना ही कहते है कि इस खूबसूरत ग़ज़ल में दो शेर और जोड़ दें
सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 4, 2015 at 8:08pm

आ० सलीम जी आपकी गज़ल का हर शेर बुलंद लगा पर बात वही बहर की खटक रही है एक शेर में काफ़िया भी दुरुस्त नही लगा!

जलव-ए-वस्ल की, फुरक़त की,सज़ा की बातें
दिल-ए-बेहोश, फिर एक होशरुबा की बातें............इस  शेर पर दिल आ गया! क्या कहने!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 2:20pm

ग़ज़ल की बह्र और काफिया ?

बाकी ये तीन अशआर जो बह्र में है या नहीं पता नहीं मगर पढने में  जबरदस्त लगे 

लब-ओ-अरिज़ की, वफ़ा और जफ़ा की बातें
नाज़-ए-महबूब की, क़ामत की, अदा की बातें
.
जलव-ए-वस्ल की, फुरक़त की,सज़ा की बातें
दिल-ए-बेहोश, फिर एक होशरुबा की बातें
.
हैं कहाँ इश्क़-ओ-वफ़ा , दर्द-ओ-दवा की बातें 
हैं फ़क़त सूद-ओ-ज़ियाँ , बुग्ज़-ओ-अना की बातें

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 2:19pm

हाल-ए-दिल हम ने सुनाया तो ज़रा बात चली
हाल-ए-दिल तुम भी सुनाओ , तो हों बाक़ी बातें .... वाह शानदार ग़ज़ल … हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 2:12pm

आदरणीय सालिम भाई , गज़ल मे बातें बहुत सुन्दर कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको । बह्र का उल्लेख आपने नही किया है , तो कुछ कह नही सकता पर सभी अशआर एक ही बहर मे नही लग रहे हैं ।

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