For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गंगा तो पवित्र है
इन्सानों के दुष्कर्म
अनवरत बहाना इसका चरित्र है
मैली पड़ जाती है
फिर भी बहती जाती है
आखिर माँ है
चुप चाप सहती जाती है
मगर दूषित करने वाले
माँ पुकार कर भी
ज़हर पिलाते जाते हैं
दुखों का अम्बार जुटाते जाते हैं
कहाँ किसी को ये प्यार दे पाते हैं
स्वार्थ ही तो कर्म है इनका
बस यही धर्म निभाते जाते हैं
इक दिन ये राख़ बन जाएंगे
माँ से मिलने फिर वापस आएंगे
किस मुहं से मुक्ति मांग पाएंगे
मगर गंगा तो आखिर गंगा माँ है
मना भी तो ना कर पायेगी
माँ क्या होती है
जो जीते जी ना समझ सके
अब राख़ बन क्या ख़ाक समझ पाएंगे !!

*****************************************

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:49pm

आदरणीय Sushil Sarna जी हार्दिक आभार आपका ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:48pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी उपस्थिति एवं प्रोत्साहन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद....सादर  

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:45pm

आदरणीया pratibha pande जी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार....सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 4, 2015 at 4:43pm

आदरणीय Harash Mahajan जी आपकी उपस्थिति और सराहना युक्त टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार 

Comment by Neeraj Neer on August 4, 2015 at 4:20pm

बहुत सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय ...

Comment by Sulabh Agnihotri on August 4, 2015 at 4:13pm

बहुत सुन्दर है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 2:16pm

आदरणीय मोहन भाई , बहुत सही और सटीक बात कही आपने । कविता के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on August 4, 2015 at 2:14pm

बहुत ही मार्मिक अभियक्ति प्रस्तुत की है आदरणीय सेठी जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 4, 2015 at 2:11pm

आदरणीय मोहन सेठी जी, बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. हार्दिक बधाई आपको 

Comment by pratibha pande on August 4, 2015 at 1:59pm
सबके दुःख अपने में समेट कर बिना शिकायत चलती रहती है माँ ,बहुत भावपूर्ण रचना है ,बधाई आपको आ०मोहन सेठी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
13 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service