For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ला सत्ते की बहू!  कुछ काम हो तो बता दे, एक कप अदरक वाली चाय भी पिला दे, आज कुछ तबियत भी ढ़ीली सी लग रही है। फिर सुना है, पंडताईन की बहू के बेटा हुआ है---, ज़रा होकर आऊंगी, मुझे याद कर रही होगी। नंबरदारनी के भी जाना है, कह रही थी, दादी ! ज़रा सिर में तेल डाल देना-----।' रह रह कर गूंज रहे थे,  उसके आखिरी शब्द, मेरे कानों में।

यही क्रम था असगरी नायन  का रोज़ का। सारा गांव उसे दादी कहकर ही बुलाता था।

दिन निकलते ही अपने घर की झाड़ू - बुहारी कर निकल जाती गांव में व शाम को ही घर लौटती।

लोगों के छोटे - मोटे काम कर देती व बदले में नाश्ता - खाना या कभी कपड़े-लत्ते पाकर ही संतुष्ट हो जाती। इससे अधिक उस अकेली जीव को चाहिए भी क्या था।

किस्मत ने ऐसा खेल खेला- न बच्चे, न पति सब एक हादसे में मारे गए। रिश्तेदारों ने भी किनारा कर लिया। वह गांव छोड़कर जाना भी नहीं चाहती थी। उसकी नज़रों में तो लोगों का प्यार ही जिलाए हुए था उसे ।

 उसके अकेलेपन के बारे में ज़िक्र आता कभी तो कहती ,’ इतनी भी बेमुरव्वत नहीं है दुनिया। तुम सब हो न ! मेरा खयाल रखने के लिए।‘

दिन में पता नहीं कितनी बार यह जुमला उसकी जुबान पर आता।

पिछले तीन दिन से उसे किसी ने नहीं देखा था। आज उसके घर में से उठ रही दुर्गंध ने ही आस-पास के लोगों का ध्यान खींचा । उसका शव सड़ी- गली अवस्था में जाने कब से घर में पड़ा था।

 दुनिया ने आखिर साबित कर ही दिया कि "बड़ी बेमुरव्वत है ये  दुनिया"।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 870

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 13, 2015 at 4:50pm

लघुकथा अच्छी हुई है आ० डॉ नीरज शर्मा जी, हालाकि कहने की शैली से किस्सागोई की झलक ज्यादा आ रही है I हर रोज़ आने जाने वाली असगरी नायन का तीन दिन तक दिखाई न देना और उसकी कोई खोज खबर लेने की चेष्टा न करना हालाकि प्रथमदृश्या बेहद अटपटा सा अवश्य लगता है, किन्तु यही चीज़ "बेमुरव्वत" शब्द को सार्थक भी कर रही है I बहरहाल इस लघुकथा पर मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है I   

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on August 6, 2015 at 8:39pm

आदरणीय सौरभ पांडे जी , रचना पर दृष्टिपात करने के लिए हार्दिक  आभार। मैं कोई अपनी रचना का बचाव नहीं करना चाहती, किन्तु यहां के गांव अब पहले जैसे गांव नहीं रहे हैं , आधुनिकता ने वहां भी धीरे धीरे दस्तक दे ही दी है, मैं स्वयं नौ वर्ष गांव में ही रही हूं, लोगों में वो पहले वाली मासूमियत या यूं कहें कि नादानी नहीं रही है, फिर कथा के शुरू में ही पात्र की तबियत ठीक न होने का ज़िक्र भी किया गया है। गांवों के बदल जाने की वेदना तो, गांव पर हर लिखने वाले की रचना में झलक ही जाती है, चाहे वह कहानी हो, कविता हो, ग़ज़ल हो। यथार्थ का चित्रण ही होना चाहिए रचना में ,समय के अनुकूल, न कि कोरी कल्पनाशीलता, ऐसा मेरा मानना है, कम से कम लघुकथा में तो।

 आपके प्रत्युत्तर की अपेक्षा के साथ, आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 6, 2015 at 4:04pm

एक ऐसा पात्र जो हाल तक गाँव की ज़िन्दग़ी का अहम हिस्सा हुआ करता था. लेकिन ऐसे हिस्से का दो-तीन दिनों तक  न दिखना और गाँव वालों का उत्सुक न होना तनिक चकित करता है. क्योंकि एक पहर के लिए कोई न देखे जिसकी अपेक्षा होती है तो गाँव वालों के आँख-कान चौकन्ने हो जाते हैं. 

वैसे आपकी किस्सागोई सार्थक है. इस प्रयास केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया नीरजजी..

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on August 5, 2015 at 11:53pm

बहुत बहुत आभार आप सबका आ. रवि प्रभाकर जी, आ.जवाहर लाल सिंह जी, आ.मोहन बेगोवाला जी, आ कान्ता रॉय जी, आ गोविंद पंडित जी, आ. तेजवीर सिंह जी। रचना पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए।

Comment by Ravi Prabhakar on August 5, 2015 at 9:50pm

आदरणीया नीरज शर्मा जी, बहुत सधी हुई कथा कही आपने । दैनंदिन की साधारण सी दिखने वाली घटना का बहुत स्‍टीक व जीवंत चित्रण किया आपने अपनी लघुकथा के माध्‍यम से । वाकई 'बड़ी बेमुरव्‍वह है ये दुनिया' । शीर्षक का चयन भी प्रशंसनीय है। सादर बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 5, 2015 at 8:28pm

बड़ी मार्मिक और दर्दनाक चित्र उकेरा है आपने -  दुनिया ने आखिर साबित कर ही दिया कि "बड़ी बेमुरव्वत है ये  दुनिया"।

Comment by मोहन बेगोवाल on August 5, 2015 at 2:31pm

   आदरणीया नीरज जी, ऐसे पात्र अब भी गाँवों में अक्सर मिल जाते हैं,जिन का आपकी लघुकथा जैसा ही अंत होता है, इस समस्या को लघुकथा देने के लिए धन्यवाद 

Comment by मोहन बेगोवाल on August 5, 2015 at 1:40pm

आदरणीया नीरज जी , ऐसे पात्र अभी भी हमारे गाँव में मिल जाते हैं,जिन का अंत आपकी लघुकथा कि पात्र जैसा होता हैं, आप  जी ने एस समस्या को उभारा..........

Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 1:09pm
ओह !!! बेहद मार्मिकता लिये हुए मन को कचोटती हुई कथा । बहुत ही सुंदर प्रस्तुति हुई है भावों का । बधाई स्वीकार किजिए आदरणीया नीरज जी ।
Comment by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 5, 2015 at 1:01pm

आ. निरज मैडम जी, आपकी यह प्रस्तुति अत्यंत मार्मिक लगी. हार्दिक बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service