लघुकथा – इच्छा
“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल बुलबुल के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.
“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही बुलबुल को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ बुलबुल बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’
यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. फिर गुमनाम राह पर जाते-जाते ठाकुर और ठकुराइन को यह खबर भेज दी कि आज आप दोनों रात को दस बजे उस के अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.” और बुलबुल उड़ गई.
-----------------------------------
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ kanta roy जी , लघुकथा का मूल उद्देश्य यह बताना है कि पत्नी के अलावा ऐसी कौन हो सकती है जो दुसरे व्यक्ति के पास जाए और उस के अतिरिक्त दुसरे के लिए अनछुई हो. इसी उद्देश्य के लिए यह कथा लिखी है .
आदरणीय Ravi Prabhakar जी , मैंने लघुकथा में मामूली बदलाव किया है . अव बताइएगा कि बात बनी या नहीं,
लघुकथा- इच्छा
“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल-मीना के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.
“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही मीना को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ मीना बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’
यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. जाते-जाते यह खबर भेज दी कि आज आप रात को दस बजे मेरे अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.”
-----------------------------------
(मौलिक और अप्रकाशित )
आ Ravi Prabhakar जी , आप का कहना सही है. मगर मैं इस अंतर कोा समझ नहीं पा रहा हूँ. कृपया स्पष्ट कीजिए.
शुक्रिया आ pratibha pande जी , आप को मेरी लघुकथा पसंद आई. पत्नी के साथ रखेल शब्द बेमेल है और रहेगा. आप के इस अनुमोदन के लिए शुक्रिया .
आ Archana Tripathi जी , आप सही है. पत्नी भाव स्पष्ट करने के लिए कोष्टक में था. कट/ पेस्ट / कॉपी में शायद छुट गया. पत्नी और रखैल में पर्याप्त अंतर है. आप का शुक्रिया आ अर्चना जी , इस ओर ध्यान दिलाने के लिए. आभार आप का आ Archana Tripathi जी एवं आ Sushil Sarna जी .
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, साहित्यक व्यंग्य ऐसा रामबाण है जो लक्ष्य को भेदकर तिलमिला देने की क्षमता रखता है। अन्तस के खंडन का एक प्रतिरोधात्मक चीत्कार ही व्यंग्य है जो सामाजिक तथ्यों का नैतिक प्रहरी होता है। व्यंग्य और चुटकुले में बाल भर का अंतर होता है। आपकी लघुकथा इस बाल भर के अंतर के इस तरफ खड़ी मालूम होती है । इस कथा का शीर्षक भी कथा के कथ्य को उद्घाटित नहीं कर पाया। सादर
आदरणीय जी लघुकथा और उसकी पंच लाईन सुंदर हुई है लेकिन हाँ रखैल पत्नी .... शब्द कुछ जमा नहीं … बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online