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ग़ज़ल - बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने की ( गिरिराज भंडारी )

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बहुत की कोशिशें मैने गमों के पार जाने  की

मुझे फिर घेर लेतीं हैं वही खुशियाँ जमाने की

 

अगर सच है, तो वो सच है ,कभी कह भी दिया कोई

जरूरत क्या पड़ी थी आपको यूँ तिलमिलाने की

 

यक़ीं हो तो यक़ीं रखना नहीं तो बेयक़ीनी रख

तेरी आदत गलत लगती है मुझको, आजमाने की

 

अँधेरा इस क़दर हावी न हो पाता किसी आंगन

रही होती अगर चाहत दिये हर घर जलाने की

 

उदासी रोज़ अपना काम करती है बिला नागा

मगर आखों को आदत पड़ गई है मुस्कुराने की

 

अभी आवाज़ मद्धम है , ज़रा ऊँचे सुरों में रो

अभी आवाज़ आती है महज़ नक्कार ख़ाने की

 

मुझे गद्दारों से इस देश के इतना ही कहना है

जगह मुश्किल पड़ेगी खोजना कल सर छिपाने की

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मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 12:01pm

शेर दर शेर दाद कबूले आदरणीय गिरिराज भंडारी जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2015 at 5:21pm

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2015 at 5:21pm

आदरणीय हर्श भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2015 at 5:20pm

आदरणीय रवि शुक्ला भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 1:18pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब ..इस ग़ज़ल के सभी शेर मुझे पसंद आये ..इस रचना के प्रस्तुति पर आपको तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Harash Mahajan on August 7, 2015 at 1:08pm

आ० गिरिराज जी .......बहुत ही असरदार अहसास हर शेर में

यक़ीं हो तो यक़ीं रखना नहीं तो बेयक़ीनी रख

तेरी आदत गलत लगती है मुझको, आजमाने की..........वाह ..क्या कहने !!

Comment by Ravi Shukla on August 7, 2015 at 11:24am

आरणीय गिरिराज जी

बहुत अच्‍छी ग़ज़ल कही आपने मतला शानदार है

और हमें निजी तौर पर ये शेर बेहद पंसद आया

उदासी रोज़ अपना काम करती है बिला नागा

मगर आखों को आदत पड़ गई है मुस्कुराने की

दिली दाद कुबूल करें । सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2015 at 8:47am

आदरणीय कृष्णा भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2015 at 8:47am

आदरणीय मिथिलेश भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे  दिल से शुक्रिया । आदरणीय सपाट बयानी वाले शे र के लिये कुछ सलाह हो तो ज़रूर बतायें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2015 at 8:45am

आदरणीय सुलभ भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।

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