For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जो खेलती थी घर में मुहब्बत नहीं रही ( गिरिरज भन्डारी )

221 2121 1221 212 ( आ. दुष्यंत कुमार की ज़मीन पर )

( अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नही रही )

********************************************************

जब से किसी के कोई भी चाहत नहीं रही

तब से किसी से कोई शिकायत नहीं रही

 

फिर जोश कह रहा है कि टकरा जा संग से

पर होश ये कहे है , वो ताकत नहीं रही

 

मेरी ही कोशिशों में कमी कुछ तो थी ज़रूर

मै क्यूँ कहूँ कि वो मेरी क़िस्मत नहीं रही 

 

बाती के साथ तेल लिये घूमता हूँ, पर

जलने की अब दियों में वो आदत नहीं रही

 

ग़ुरबत के पाँव घर पे मेरे जब से गड़ गये

जो खेलती थी घर में मुहब्बत नहीं रही

 

असबाबे ज़िन्दगी तो बहुत आस पास हैं  

क्यूँ मेरी ज़िन्दगी में वो लज़्ज़त नहीं रही

              

हमने खुशी बनाई है अश्क़ों को बीन कर

सच में खुशी की हम पे इनायत नहीं रही

 

रोना नहीं, कि दिल न पिघल जाये, मोम है   

पत्थर से दो घड़ी मेरी सुहबत नहीं रही

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2015 at 2:06pm

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 5, 2015 at 1:48pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..दुष्यंत कुमार जी की जमीन पर लिखी इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2015 at 1:28pm

आदरणीय दिनेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।

Comment by दिनेश कुमार on August 5, 2015 at 4:25am
आदरणीय, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है। दिल से दाद क़बूल करें।
मै क्यूँ कहूँ कि वो मेरी क़िस्मत नहीं रही ...बहुत खूब
फिर जोश कह रहा है कि टकरा जा संग से...वाह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 10:14pm

आदरणीय मनोज भाई , आपके स्नेह  और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । मेरी शुभ कामनायें सदा आपके साथ है ।

Comment by मनोज अहसास on August 4, 2015 at 9:22pm
इस खूबसूरत ग़ज़ल पर ये नाचीज़ आपको नमन ही कर सकता है
मेरे प्रणाम स्वीकार करें
और आशीर्वाद दें
कि कभी कुछ लिख पाऊ ऐसा ही
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 9:17pm

आदरणीया नीरज जी , हौसला अफज़ाई  का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 4, 2015 at 9:16pm

आदरणीया राजेश जी , आपने सही कहा , मतले में , से की जगह के टाइप कर दिया हूँ , सुधार कर लूंगा । ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on August 4, 2015 at 9:02pm

बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने आ. गिरिराज भंडारी जी। एक एक शेर काबिले तारीफ है।

ग़ुरबत के पाँव घर पे मेरे जब से गड़ गये

जो खेलती थी घर में मुहब्बत नहीं रही।---बहुत खूब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2015 at 8:39pm

जब से किसी के कोई भी चाहत नहीं रही----जब से किसी से ...कर लें शायद गलती से के आ गया

बाती के साथ तेल लिये घूमता हूँ, पर

जलने की अब दियों में वो आदत नहीं रही

 

ग़ुरबत के पाँव घर पे मेरे जब से गड़ गये

जो खेलती थी घर में मुहब्बत नहीं रही

 

असबाबे ज़िन्दगी तो बहुत आस पास हैं  

क्यूँ मेरी ज़िन्दगी में वो लज़्ज़त नहीं रही

       बहुत  बेहतरीन ग़ज़ल हर शेर शानदार इन तीन के लिए तो ढेरों दाद लीजिये आ० गिरिराज भंडारी जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
29 minutes ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service