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ठठरी पर ईमानदारी /लघुकथा /कान्ता राॅय

ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो ईमानदारी सारी रस्सी तोड़कर उठ बैठी थी ।
.
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:10am
बहुत खूब कही है अापने अादरणीया प्रतिभा जी , सच में जो अंदर से बेहद डरे हुए होते है वो ही जल्दबाजी करते है इमानदारी को ठठरी पर बाँधने की । आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:04am
इमानदारी जिस दिन खत्म हो जायेगी उस दिन सर्वनाश निश्चित है ये बिलकुल सही कह रही है आप आदरणीया राजेश कुमारी जी आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:00am
बिलियन सच कहा हैै आपने आदरणीया नीरज जी कि यह इतना आसान नहीं होता है सच को ठठरी पर कसना । लाख बुराइयाँ सर उठा ले इसके बावजूद इमानदारी नें बडे़ ही शान से अपने वजूद को कायम कर रखा है । आभार
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 6:56am
हृदयतल से आभार आपको कथा को मान देने के लिए आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ।
Comment by Ravi Prabhakar on August 7, 2015 at 8:07am

'वाह' । इस मंच पर एक दो शब्‍दी टिप्‍पणी देना स्‍वीकार्य नहीं है और इसे हल्‍की व फेसबुकिया टिप्‍पणी माना जाता है । अब 'वाह' के आगे मेरे पास शब्‍द ही नहीं है, निशब्‍द कर दिया आपकी लघुकथा के इस कलेवर ने । एक सशक्‍त व लीक से हट कर रची इस कथा के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय कांता जी । सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 7:57pm
ईमानदारी को सदा से बेईमानी से ही ख़तरा रहा है , बेईमानी उसे अनंत काल से उखाड़ने , मिटाने में लगी है , पर बिचारी बार जाती है।
बधाई इस प्रेरक प्रस्तुति पर , आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , सादर।
Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 6, 2015 at 7:40pm
गज़ब लिखा आपने जीजी... बहुत ही सुन्दर
Comment by TEJ VEER SINGH on August 6, 2015 at 3:35pm

आदरणीय कान्ता जी,सुंदर  लघुकथा के लिए मेरी ओर से  हार्दिक बधाई!बहुत ही गहरी बात कह दी आपने इस लघुकथा के माध्यम से!अति उत्तम!पुनः बधाई!

Comment by विनय कुमार on August 6, 2015 at 2:55pm

बहुत अच्छे भाव की लघुकथा आदरणीया कान्ता रॉय जी , बधाई.

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 1:52pm

आदरणीय कांता जी बहुत ही सशक्त लघु कथा हुई है  … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं। 

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