122 122 122 122
जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का
वहीं से मिला रास्ता रोशनी का
सलीबें न बदली न बदले मसीहा
वही हाल है आज तक हर सदी का
सितारे फलक से न आये उतर कर
हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का
न तुम रो सके औ हमारी अना को
सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का
समन्दर सुख़न के तलाशे बहुत से
ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का
पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई
न अहसां उठाया न बदला सलीका
यही चार दिन है यहीं जी सको तो
न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का
मौलिक एवं अप्रकाश्ाित
Comment
आरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और शेर पर इस्लाह से उत्हसाहित है हम आपका सुझाव पूरी तरह से सही है । किन्तु क्षमा सहित निवेदन करना चाहते है कि, हम जो विचार लेकर चल रहे है वह बदल जाएगा । आपके सुझाव अनुसार यही चार दिन जी ले तो कभी जिंदगी का अफसोस नहीं होगा । और हम ये कहना चाह रहे है कि इन चार दिन को यहीं इसी वर्तमान मे जी लिया जाए इस के आगे किसी स्वर्ग के प्रलोभन और नर्क के कथित भय से मुक्त हो कर जी लिया जाए । इस दृष्टि से भी कही जा सकती है बात । आशा है आप हमारी बात को समझ रहे है । आपकी विश्लेषणात्मक टिप्पणी से सदैव ही सोच को आयाम मिलता है और वह प्रतीक्षित रहती है । आशा है इसी प्रकार अनुग्रह बनाये रखेगें ।
आदरणीय डॉ . गोपाल नारायण जी आपका आर्शीवाद मिल गया लिखना सार्थक हो गया बहुत बहुत आभार आपका
आरणीय विजय जी आपको शेर पसंद आया लिखना सार्थक हुआ आभार आपका
आरणीय नरेन्द्र सिंह जी ग़जल पर आपकी उपस्थिति से खुशी हुई है धन्यवाद
आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्वस्त हुए हम आभार
आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्वस्त हुए हम आभार
आदरणीय मिथिलेश जी कई दिनों बाद लौटे है इस लिये विलंब से आपकी प्रतिक्रिया का आभार दे पा रहे है । संभालते संभालते गलती हो ही गई :-) क्षमा । /// हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का ///से प्रतिस्थापित कर लिया है मूल आलेख को । आपकी हौसला आफजाई का शुक्रिया । सादर
समन्दर सुख़न के तलाशे बहुत से
ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का-------------कमाल है .
सभी शेर अच्छे लगे, विशेषकर निम्न...
//सलीबें न बदली न बदले मसीहा
वही हाल है आज तक हर सदी का\\
हार्दिक बधाई।
जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का वहीं से मिला रास्ता रोशनी का
सलीबें न बदली न बदले मसीहा वही हाल है आज तक हर सदी का
लाजवाब ग़ज़ल
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