For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़्वाब :....

हकीकत के बिछोने पर
हर ख़्वाब ने दम तोड़ा है
नहीं, नहीं
ख़्वाब कहाँ दम तोड़ते हैं
हमेशा इंसान ने ही दम तोड़ा है
हर टूटता ख़्वाब
इक नए ख़्वाब का आगाज़ होता है
हर नया ख़्वाब
फिर इक तड़प दे जाता है
और चलता रहता है
सूखे हुए गुलाबों की
सूखी महक में जीने का सिलसिला
इंसान को शबनमी ख़्वाबों में
फ़ना होने की
आदत सी हो गई है
बस, ख्वाब को मंज़िल समझ
अंधेरों से लिपट कर जीता है
दर्द को साँसों में घोल
घूँट घूँट कर पीता है
ज़िंदगी के फ़टे पैरहन से
रिस्ते दर्द के लम्हों को
अश्कों के धागों से सीता है
सुकून के तलाश में
वो ख़्वाब-दर-ख़्वाब जीता है
ये अंधेरों की दौलत है
अंधेरों में आती है
सहर का ख़्वाब देकर
अंधेरों में खो जाती है
ख़्वाब कभी थकते नहीं
थक जाती है ज़िंदगी
लम्हा लम्हा यूँ ही
गुज़र जाती हैं ज़िंदगी
ख़्वाब तो ज़िंदा रहते हैं
मगर सौ जाती है ज़िंदगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 358

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2015 at 1:12pm

आदरणीय Harash Mahajan जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। कम्प्यूटर में तकनीकि व्यवधान के करना प्रत्युत्तर न दे सका, विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2015 at 1:12pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। कम्प्यूटर में तकनीकि व्यवधान के करना प्रत्युत्तर न दे सका, विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 1:51pm

आदरणीय Sushil Sarna  जी एक अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 26, 2015 at 12:46pm

आदरणीय सुशील सरना सर, इस सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. इस रचना की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service