अंगूठी (लघु कथा )
'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी ओल्ड ऐज है। थकी हुई हैं। उन्हें सहारे की जरूरत है। बड़ा भाई दिल्ली रहता है। हमारे अलावा उनका कौन है। इतनी सी बात के लिए नाराज़ होकर घर छोड़ने का फैसला लेना उचित नहीं है।'' '' मैं रोज रोज डांट नहीं खा सकती। मैं अपने बच्चे को पीहर ले जाऊँगी और वहीं नौकरी करूंगी और दीपू को पढ़ाऊँगी। ''रेनू के क्रोध की ज्वाला शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी। रणधीर के लाख समझाने के बावज़ूद वो अपनी अपनी ज़िद पर अडिग थी। रणधीर के पिता ने भी बहुत समझाया कि घर छोड़ने का हठ छोड़ दो बेटी। ज़िंदगी का मज़ाक मत बनाओ। दो परिवार, मासूम बच्चा और तुम्हारी शादी शुदा ज़िंदगी सिर्फ नारी हठ की भेंट चढ़ जाएंगे। मगर त्रिया हठ के आगे किसी की भी न चली। शादी के पावन रिश्ते की निशानी सगाई की अंगूठी रेनू ने आईने के सामने रख कर कहा ''मैं कुछ भी अपने साथ नहीं ले जा रही हूँ। '' टैक्सी मंगवाई और दीपू के संग उसमें बैठकर अपने निर्णय को कार्य रूप दे दिया। मासूम दीपू की आँख से गिरा पानी चार माह के अंतराल के बाद भी रणधीर अपनी आँख में समेटे था। आईने पर पडी अंगूठी सात जन्मों के रिश्ते पर कहकहे लगा रही थी। रणवीर सोचने लगा कि अग्नि के चारों ओर विवाह के फेरे लेते वक्त पंडित ने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जो मंत्रोचार किया था क्या वो सब मिथ्या था ? क्या सब वैदिक मन्त्र मात्र दिखावा हैं ? ये मन्त्र तो लगता है सात जन्मों के गठबंधन की गारंटी तो छोड़ो शायद सात क़दम साथ चलने की गारंटी भी नहीं देते। जब तक मन में एक दूसरे के लिए समर्पण भाव न हो तब तक कोई भी पावन अग्नि , कोई भी मन्त्र विवाह के रिश्ते को अमर नहीं बना सकता। आईनें पर पडी अंगूठी ने अटूट कहे जाने वाले वैवाहिक जीवन की परिभाषा को डगमगा दिया।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया जितेन्द्र पस्टारिया जी लघुकथा के मर्म और आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। काफी समय के बाद मेरी रचना पर आपके आगमन से हृदय हर्षित है। हार्दिक आभार।
बहुत ही अच्छे विषय पर ,सुंदर लघुकथा साझा की आदरणीय सरना साहब. रिश्तों में आतुरता या दूर तक बिन सोचे लिए फैसले ही इन समस्यायों का कारण है. वरना रिश्ते तो रिश्ते होते है ,जो कभी तोड़े से भी नहीं टूटते. प्रस्तुति पर बधाई आपको
आदरणीय रवि प्रभाकर जी कथा मर्म आप की स्वीकृति ने मेरी सृजन शक्ति को बल दिया है। आपकी गहन समीक्षा और सुझाव मेरे भावी सृजन के लिए अमूल्य हैं। करत करत अभ्यास ते जड़मति होती सुजान … हा हा हा .... हमजैसे जड़मति वालों को आपका पथप्रदर्शन अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सदा सहायक रहेगा।
आपकी इस समीक्षात्मक एवं प्रशंसात्मक प्रतिक्रिय का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना जी लघुकथा एक लेखकविहीन विधा है अर्थात् लघुकथा में लेखक की स्थूल उपस्थिती वर्जित है /रणवीर सोचने लगा कि अग्नि के चारों ओर विवाह के फेरे लेते वक्त पंडित ने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जो मंत्रोचार किया था क्या वो सब मिथ्या था ? क्या सब वैदिक मन्त्र मात्र दिखावा हैं ? ये मन्त्र तो लगता है सात जन्मों के गठबंधन की गारंटी तो छोड़ो शायद सात क़दम साथ चलने की गारंटी भी नहीं देते। जब तक मन में एक दूसरे के लिए समर्पण भाव न हो तब तक कोई भी पावन अग्नि , कोई भी मन्त्र विवाह के रिश्ते को अमर नहीं बना सकता।/ इन पंक्ितयाें में लेखक की उपस्िथती ने लघुकथा को कमजोर बना दिया है।
आपने सभी पंक्ितयां एक साथ एक ही पैराग्रॉफ में लिख डालीं है जिसकी वजह से कथा संप्रेषणीय नहीं बन पाई । यदि वार्तालाप को इन्वर्टड कौमास के साथ ऐंटर लगा कर लिखा जाता तो बहुत अच्छा होता । बहरहाल आपकी कथा का कथानक बहुत प्रभावशाली है, सादर शुभकामनाएं ।
आदरणीया अर्चना जी लघुकथा के मर्म और आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय pratibha pande जी लघु कथा पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश जी लघु कथा पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीया सुशील सरना सर, बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई
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