चाँद के माथे पे शायद .......
चाँद के माथे पे शायद
दुनिया के लिए सिर्फ दाग है
पर दाग वाला चाँद ही
आसमां का ताज़ है
करता वो अपनी चांदनी से
मुहब्बतों की बरसात है
है नहीं वो दिल ज़मीं पे
जिसमें वो बसता नहीं
हों खुली या बंद पलकें
ये हर पलक का ख़्वाब है
अब्र से सावन में छुपकर
वो झांकता है इस तरह
हो रही ज़ुल्फ़ों से जैसे
नूर की बरसात है
हर खुशी के लम्हों में
होते हैं पल कुछ ऐसे भी
बीती शब के दर्द के
जिसमें नमी के दाग हैं
है दर्द का वो दाग शायद
जो चाँद के माथे पे है
सच मुहब्बत में मिला
ये कितना हसीं अहसास है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया kanta roy जी रचना पर आपकी भावभीनी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बीती शब के दर्द के
जिसमें नमी के दाग हैं
है दर्द का वो दाग शायद
जो चाँद के माथे पे है ......वाह !!!! मोहब्बत कहाँ किसी दाग की फिक्र करती है । वो हर हाल में आसमान का ताज ही होती है । वक्त के बदलने से जो रिश्ते बदला करते वो क्या खाक रिश्ते हुआ करते है । ये बहुत बडी़ बात कही है आपने आदरणीय सुशील सरना जी । बधाई आपको इस सुंदर कविता के लिए ।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीया pratibha pande जी रचना पर आपकी भावभीनी प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर, इस सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
हर ख़ुशी के लम्हों में / होते हैं पल कुछ ऐसे भी/बीती शब् के दर्द के / जिसमे नमीं के दाग हैं , बहुत भावपूर्ण रचना ,बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील भाई , भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
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