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चाँद के माथे पे शायद ...........

चाँद के माथे पे शायद .......

चाँद के माथे पे शायद
दुनिया के लिए सिर्फ दाग है
पर दाग वाला चाँद ही
आसमां का ताज़ है
करता वो अपनी चांदनी से
मुहब्बतों की बरसात है
है नहीं वो दिल ज़मीं पे
जिसमें वो बसता नहीं
हों खुली या बंद पलकें
ये हर पलक का ख़्वाब है
अब्र से सावन में छुपकर
वो झांकता है इस तरह
हो रही ज़ुल्फ़ों से जैसे
नूर की बरसात है
हर खुशी के लम्हों में
होते हैं पल कुछ ऐसे भी
बीती शब के दर्द के
जिसमें नमी के दाग हैं
है दर्द का वो दाग शायद
जो चाँद के माथे पे है
सच मुहब्बत में मिला
ये कितना हसीं अहसास है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on September 4, 2015 at 6:51pm

आदरणीया   kanta roy  जी रचना पर आपकी भावभीनी प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:51pm

बीती शब के दर्द के 
जिसमें नमी के दाग हैं 
है दर्द का वो दाग शायद 
जो चाँद के माथे पे है ......वाह !!!! मोहब्बत कहाँ किसी दाग की फिक्र करती है । वो हर हाल में आसमान का ताज ही होती है । वक्त के बदलने से जो रिश्ते बदला करते वो क्या खाक रिश्ते हुआ करते है । ये बहुत बडी़ बात कही है आपने आदरणीय सुशील सरना जी । बधाई आपको इस सुंदर कविता के लिए ।

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2015 at 7:47pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2015 at 7:47pm

आदरणीया   pratibha pande  जी रचना पर आपकी भावभीनी प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 5:35pm

आदरणीय सुशील सरना सर, इस सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये  हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by pratibha pande on September 3, 2015 at 3:08pm

हर ख़ुशी के लम्हों  में / होते हैं पल  कुछ ऐसे भी/बीती शब् के दर्द के / जिसमे नमीं के दाग हैं , बहुत भावपूर्ण रचना ,बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी

Comment by Sushil Sarna on September 2, 2015 at 12:28pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 2, 2015 at 11:39am

आदरणीय सुशील भाई , भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिये आपको  हार्दिक बधाइयाँ ।

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