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चुनौती /लघुकथा /कान्ता राॅय

आज कोचिंग से निकलने में देर हो गई थी , इसलिए घर जल्दी पहुँचने के लिए उसने मेन रोड छोड़ इसी गली से निकलने का फैसला किया था । हालांकि रात में इस गली से निकलने के लिए मम्मी ने मना किया था लेकिन आज बडी़ ही मजबूरी हो चली थी । कलाई पर बंधी घड़ी की सुई पर नजर पडते ही वो सहम उठी । गली सुनसान -सन्नाटा हुआ जा रहा था । करीब दस फर्लांग ही आगे बढीं होगी कि पीछे से आहट आई । उसे भान हुआ कि कोई पीछे आ रहा है । पलट कर देखा । दो लडके थे । स्थिति को भाँप वो लम्बी - लम्बी डग भरने लगी । पीछे से पदचाप की आवाजें भी तेज हो गई थी । आहटें अब लगभग करीब ही थी । अब मन को सचेत कर एक हाथ बैग के अंदर और दूसरे हाथ को मुट्ठी के शक्ल में मजबूती से कसते हुए , अपने पैरों में पूरी ताकत बटोर जबड़ों को भींच अब जरा और सावधान हो चली । जैसे ही वे सामने आये कि अचानक मुड़ कर दाहिने हाथ से कराटे का एक चाप दे , तुरंत पलट दूजे हाथ से मिर्ची स्प्रे दूसरे के आँखों में और एकदम से बडी़ तेजी से पलट अपने पैरों से पूरी ताकत लगा पहले वाले के नाजुक अंगों पर बडे दम लगा कर चोट की और जोर से भागी ।

वे दोनों अचानक से हुए इस प्रहार के लिए तैयार नहीं थे सो जमीन पर धडाम से औंधे गिरकर दर्द से बिलबिला उठे ।
"आह ...ऊँह.......साले ... कहा था ना कि जींस वाली लडकियों से मत उलझ , वो तेज होती है ! "

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on August 26, 2015 at 1:44pm
हृदयतल से आभार आपको आदरणीय डा. विजय शंकर जी कथा पर हौसला बढाने के लिये ।
Comment by MAHIMA SHREE on August 25, 2015 at 11:22pm

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतिकरण ....संदेशपरक तो है ही......बधाई  आपको..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 5:15pm

आदरणीया प्रतिभा जी, आपने बिलकुल सही कहा. इस सामान्य से कथानक में कांता जी अपनी शैली का जादू डालकर इसे विशिष्ट लघुकथा बना दिया. मैं भी आज इधर उधर से इस लघुकथा पर आ जा रहा हूँ. शब्द चयन इतना बढ़िया है जैसे -जमीन पर धडाम से औंधे गिरकर दर्द से बिलबिला उठे । .... बिलबिलाने का किता बढ़िया प्रयोग किया है. वाह 

Comment by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 4:13pm

वाह आदरणीया कांता रॉय जी वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे कथानक की सख़्त आवश्यकता है। इस सशक्त लघु कथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 3:32pm

 आ० कांता जी , एक्शन पैक्ड लघु कथा है और बार बार एक्शन रीप्ले करके पढने का मन हो रहा है ,बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 11:54am

आदरणीया कांता रॉय जी, बहुत शानदार लघुकथा हुई है. कथानक को आपने सधी हुई शैली में शाब्दिक करते हुए लघुकथा को प्रभावकारी बना दिया है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई. 

यह उन रचनाओं की श्रेणी में है जिनकी आज समाज को सबसे ज्यादा जरुरत है. इसके लिए आपका आभारी हूँ.

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 25, 2015 at 9:36am
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी, मनोबल बढ़ाती इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई , सादर।

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